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* चौबीस तीर्थर पुराण *
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भगवान पद्मप्रभ | कि सेव्यं क्रम युग्म मजविजया दस्यैव लक्ष्म्यास्पदं
किं श्रव्यं सकल प्रतीति जनना दस्यैव सत्यं वचः । किं ध्येयं गुणसंतित श्च्युत मलस्यास्यैव काष्ठाश्रया
दित्युक्त स्तुति गोचरःस भगवान्पद्मप्रभः पातुवः । आचार्य गुणभद्र "सेवा किसकी करनी चाहिये ? कमलको जीत लेनेसे लक्ष्मीके स्थानभूत भगवानके चरण युगलकी । सुनना क्या चाहिये ? सवको विश्वास उत्पन्न करनेसे इन्हीं पद्मप्रभ भगवान्के सत्य वचन । ध्यान किसका करना चाहिये ? अन्तरहित होनेके कारण, निर्दोष इन्हीं पद्मप्रभ महाराजके गुण समूह । इस प्रकारकी स्तुतिके विषयभूत भगवान् प्रमप्रभ तुम सबकी रक्षा करें।"
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पूर्वभव परिचय दूसरे धातकी खण्डद्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रमें सीता नदीके दाहिने किनारेपर एक वत्स नामका देश है। उसके सुसीमा नगरमें किसी समय अपराजित नामका राजा राज्य करता था। सचमुचमें राजाका जैसा नाम था वैसा ही उसका बल था। वह कभी शत्रओंसे पराजित नहीं हुआ। उसकी भुजाओंमें अप्रतिम बल था जिससे उसके सामने रणक्षेत्रमें कोई खड़ा भी न हो पाता था। उसके पास जो असंख्य सेना थी वह सिर्फ प्रदर्शनके लिये ही थी क्योंकि शत्रु लोग उसका प्रताप न सहकर दूरसे हीभाग जाते थे। वह हमेशा अपनी प्रजाकी भलाईमें संलग्न रहता था। राजा अपराजितने दान दे देकर दरिद्रोंको लखपति बना दिया था उसकी स्त्रियां अपने अनुपम रूपसे सुर सुन्दरियोंको भी पराजित करनेवाली थीं। उन सबके साथ सांसारिक सुख भोगता हुआ वह चिरकालतक पृथिवीका पालन करता रहा।
एक दिन किसी कारणसे उसका चित्त विषयवासनाओंसे हट गया था इसलिये वह सुमित्र नामक पुत्रके लिये राज्य दे वनमें जाकर विहितास्रव
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