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* चौबीस तीर्थङ्कर पुराण *
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भगवान अभिनन्दननाथ गुणाभिनन्दा दमि नन्दनो भवान
दयाव● शान्ति सखी मशिश्रियत । समाधि तन्त्रस्तदुपोपपत्तये
द्वयेन नैर्ग्रन्थ्य गुणेन चायुजत ॥ - स्वामि समन्तभद्र "जिनेन्द्र ! सम्यग्दर्शन आदि गुणोंका अभिनन्दन करनेसे 'अभिनन्दन कहलाने वाले आपने शान्ति-सत्रीसे युक्त दया रूपी स्त्रीका आश्रय किया था और फिर उसकी सत्कृतिके लिये ध्यानैकमान होते हुए आप द्विविध अन्तरङ्ग वहिरंग रूप निष्परिग्रहतासे युक्त हुए थे।'
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पूर्वभव परिचय जम्बू द्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रमें सीता नदीके दक्षिण तटपर एक मंगलावती नामका देश है । उसमें रत्नसंचय नामका एक महा मनोहर नगर है। उनमें किसी समय महावल नामका राजा राज्य करता था । वह बहुत ही सम्पत्ति शाली था । उसके राज्यमें सब प्रजा सुखी थी, चारों वर्गों के मनुष्य अपने अपने कर्तव्यों का पालन करते थे। महावल दरअसलमें महाबल ही था। उसने अपने बाहुवलसे समस्त विरोधी राजाओंके दांत खट्टे कर दिये थे। वह सन्धि विग्रह, यान, संस्थान, आसन और द्वैधीभाव इन छह गुणोंसे विभूषित था। उसके साम, दाम, दण्ड और भेद ये चार उपाय कभी निष्फल नहीं होते थे। वह उत्साह, मन्त्र और प्रभाव इन तीन शक्तियोंसे युक्त था, जिससे वह हरएक सिद्धियोंका पात्र बना हुआ था । कहनेका मतलब यह है कि उस समय वहां राजा महावलकी बराबरी करने वाला कोई दूसरा राजा नहीं था। अपनी कान्तिसे देवांगनाओंको भी पराजित करने वाली अनेक नर देवियोंके साथ तरह तरहके सुख भोगते हुए महाबलका बहुतसा समय व्यतीत हो गया।