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* चौवीस तीर्थक्करपुराण *
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कल्पना कर प्रति दिन भक्तिसे नमस्कार करता था। उस समय बहुतसे लोगों ने राजा आनन्दका अनुकरण किया था उसी समयसे भारतवर्पमें सूर्य नमस्कारकी प्रथा चल पड़ी थी। राजा आनन्दने बहुत समय तक पृथिवीका पालन । किया।
एक दिन उसे अपने शिरमें सफेद बालके देखनेसे वैराग्य उत्पन्न हो आया जिससे वह अपना विशाल राज्य ज्येष्ठ पुत्रको सौंपकर किन्हीं समुद्रदत्त नामके मुनिराजके पास दीक्षित हो गये। उन्हींके पास रहकर उसने | सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान, सम्यकचारित्र और तप इन चार आराधनाओंकी आराधना की । ग्यारह अंगोंका ज्ञान प्राप्त किया और विशुद्ध हृदयसे दर्शन विशुद्धि आदि सोलह भावनाओंका चिन्तवन कर तीर्थंकर नामक पुण्य प्रकृतिका वन्ध किया। एक दिन मुनिराज आनन्द प्रायोप गमन सन्यास लेकर निराकुल रूपसे क्षीर नामक बनमें बैठे हुए थे। कमठका जीव भी नरकसे निकलकर उसी वनमें सिंह हुआ था । ज्यांही उसकी दृष्टि मुनिराजपर पड़ी त्योंही उसे पूर्वभवके संस्कारसे प्रचण्ड क्रोध आ गया। उसने अपनी पैनी डांढोंसे आनन्द मुनिराज का गला पकड़ लिया। सिंह कृत उपसर्ग सहन कर मुनिराज आनत स्वर्गके प्राणत नामके विमानमें इन्द्र हुए। वहां उनकी आयु वीस सागरकी थी, साढ़े तीन हाथका शरीर था । शुक्ल लेश्या थी, वह दश माह बाद श्वांस लेता
और बीस हजार वर्ष बाद मानसिक आहार ग्रहण करता था। उसे जन्मसे ही अवधि ज्ञान प्राप्त था इसलिये वह पांचवें नरक तककी घातोंको स्पष्ट जान लेता था। अनेक देव देवियां उसकी सेवा करती थीं। यही अहमिन्द्र आगेके भवमें भगवान पार्श्वनाथ होगा। कहाँ ? सो सुनिये:
[२] वर्तमान परिचय ___ जम्बू द्वीपके भरत क्षेत्रमें काशी नामका विशाल देश है। उसमें अपनी शोभासे अलका पुरीको जीतने वाली एक बनारस नामको नगरी है। बनारसके समीप ही शान्त-स्तिमित गतिसे गंगा नदी बहती है। वह अपनी धवल तरंगोंसे किनारेपर बने हुए मकानोंको सींचती हुई बड़ी ही भली मालूम होती
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