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* चौबीस तीथङ्कर पुराण *
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प्रभावित होकर देवोंने धन्य राजाके घरपर पश्चाश्चर्य प्रकट किया। आहार लेकर भगवान् पुनः वनमें आकर विराजमान हो गये। इस तरह कभी प्रतिदिन कभी दो-चार, छह आदि दिनोंके बाद आहार लेते और आत्मध्यान करते हुए उन्होंने छद्मस्थ अवस्थाके चार माह व्यतीत किये । फिर वे उसी दीक्षा-वनमें देवदारु वृक्षके नीचे सात दिनके अनशनकी प्रतिज्ञा लेकर ध्यानमें मग्न हो गये । जब वे ध्यानमें मग्न होकर अचलकी तरह निश्चल हो रहे थे उसी समय कमठ-महीपालका जीव कालसंवर नामका ज्योतिषी देव आकाश मार्गसे बिहार करता हुआ वहांसे निकला । जब उसका विमान मुनिराज पार्श्वनाथके ऊपर आया तब वह मन्त्रसे कीलित हुएकी तरह अकस्मात् रुक गया । जब कालसंघरने उसका कारण जाननेके लिये यहां-वहां नजर दौड़ाई तब उसे ध्यान करते हुए भगवान् पार्श्वनाथ दीख पड़े। उन्हें देखते ही उसे अपने बैरकी याद आ गई जिससे उसने क्रुद्ध होकर उनपर घोर उपसर्ग करना शुरू कर दिया । सघसे पहले उसने खूब जोरका शब्द किया और फिर लगातार सात दिनतक मूसलधार पानी बरषाया, ओले वरषाये और वज्र गिराया। पर भगवान् पावनाथ कालसंबरके उपसर्गसे रञ्चमात्र भी विचलित नहीं हुए। इनके द्वारा दिये गये नमस्कार मन्त्रके प्रभावसे जो सर्प, सर्पिणी, धरणेन्द्र और पद्मावती हुए थे, उन्होंने अवधि ज्ञानसे अपने उपकारी पार्श्वनाथके ऊपर होनेवाले घोर उप सर्गका हाल जान लिया। जिससे वे दोनों घटनास्थलपर पहुंचे और वह भगवान् पार्श्वनाथको उस प्रचण्ड घनघोर वर्षाके मध्यमें मेरुकी तरह अविचल देख कर आश्चर्य से चकित हो गये । उन दोनोंने उन्हें अपने ऊपर उठा लिया और उनके शिरपर फणावली तान दी। जिससे उन्हें पानीका एक बूंद भी नहीं लग सकता था। उसी समय ध्यानके माहात्म्यसे घातिया कर्मों का नाशकर उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। भगवान्के अनुपम धैर्यसे हार मानकर संघर देव बहुत ही लजित हुआ। उसी समय उसकी कषायोंमें कुछ शान्तता आ गई जिससे वह पहलेका समस्त वैरभाव भुलाकर क्षमा मांगनेके लिये उनके चरणोंमें आ पड़ा । उन्होंने उसे भव्य उपदेशसे सन्तुष्ट कर दिया। भगवान् पाश्वनाथको चैत्र कृष्ण चतुर्थीके दिन केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। केवल ज्ञान
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