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५ चौबीमतीर्थ हर पुराण *
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भगवान मल्लिनाथने कुमार अवस्थामें ही अजेय कामदेवको जीतकर अपने नामको सार्थक किया था। वे महावली थे-शूरवीर थे, किन्तु नर शत्रुओं के संहारके लिये नहीं, अपि तु आत्म शत्रु मोह मद मदन आदिको जीतनेके लिये। इस तरह इनके पवित्र जीवन और निर्मल आचारोंका विचार करनेपर 'मल्लिनाथ स्त्री थे' यह केवल कल्पना है।
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भगवान् मुनिसुव्रतनाथ
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अवोध कालोरग मूढ़ दष्ट
मबुधत् गारुडरत्नवद्यः । जगत्कृपाकोमलं दृष्टि पातैः
प्रभुः प्रसद्यान्मुनिसुव्रतो नः ॥-अहास "जिन्होंने अज्ञानरूपी काले सर्पके द्वारा डसे हुए इस मूर्छित संसारको गरुडरत्नके समान सचेत किया था वे भगवान् मुनि सुव्रतनाथ अपने कृपा कोमल दृष्टिपातके द्वारा हम सवपर प्रसन्न होवें।"
[१] पूर्वभव वर्णन जम्बूद्वीप-भरतक्षेत्रके अङ्ग देशमें एक चम्पापुर नामका नगर था। उसमें किसी समय हरिवर्मा नामके राजा राज्य करते थे। महाराज हरिवर्मा अपने समयके अद्वितीय वीर बहादुर थे। उन्होंने अपने बाहुबलसे समस्त शत्रुओंकी आंखें नीचे कर दी थीं।
एक दिन चम्पापुरके किसी उद्यानमें अनन्त वीर्य नामके मुनिराज पधारे। उनके पुण्य प्रतापसे.वनमें एक साथ छहों ऋतुओंकी शोभा प्रकट हो गई। विरोधी जन्तुओंने परस्परका.वैरभाव छोड़ दिया। जब वनमालीने जाकर राजा हरिवर्मासे मुनिराज अनन्तवीर्यके शुभागमनका समाचार कहा तब वे बहुत ही प्रसन्न हुए। सच है-भव्य पुरुषों को वीतराग साधुओंके समागमसे जो