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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
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आचार्य गुणभद्रने लिखा है कि-'उनके समवसरणमें मल्लि आदि अठारह गणथर थे, पाँच सौ द्वादशांगके जानकार थे, इक्कीस हजार शिक्षक थे, एक हजार आठ सौ अवधिजानी थे, एक हजार पांच सौ मनः पर्ययज्ञानी थे एक हजार आठ सौ केवलज्ञानी थे, वाई म सौ विक्रिया ऋद्धिके धारक थे आर एक हजार दो सौ चादी थे। इस तरह सब मिलकर तीम हजार मुनिराज थे। इनके सिवाय पुष्पदत्ता आदि पचास हजार आर्यिकाएँ थीं, एक लाख आवक थे, तीन लाख श्राविकाएं थीं, असंख्यात देव-देवियाँ और संख्यात तिथंच थे। इन सबके साथ भगवान मुनि सुव्रतनाथ अनेक आर्य क्षेत्रोंमें विहार करते थे।
निरन्तर बिहार करते-करते जब उनकी आयु एक माह अवशिष्ट रह गई तब उन्होंने सम्मेद शिखरपर पहुंचकर वहां एक हजार राजाओंके साथ प्रतिमा योग धारण कर लिया और शुक्लध्यानके द्वारा अघाति चतुष्कका क्षय कर फाल्गुन कृष्ण द्वादशीके दिन श्रवण नक्षत्रमें रात्रिके पिछले पहर मुक्ति मन्दिर में प्रवेश किया। इन्द्र आदि देवोंने आकर उनके निर्वाण कल्याणकका महान उत्सव किया।
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भगवान नामिनाथ
शिखरिणी स्तुतिः स्तोतुः साधो कुशल परिणामाय स तदा
भवेन्मावा स्तुत्यः फलमपि ततस्तस्य च सतः । किमेवं स्वाधीनाज्जगति सुलभ श्रायस पथे स्तुयान्नत्वा विद्वान सततमपि पूज्यं नमिजिनम् ॥
-स्वामी समन्तभद्र "साधुकी स्तुति, स्तुति करने वालेके कुशल अच्छे परिणामके लिये होती है । यद्यपि उस समय स्तुति करने योग्य साधु सामने मौजूद हों और न भी
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