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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
उपदेशसे प्रतिवुद्ध होकर अनेक नर नारियों ने व्रत दीक्षाएं ग्रहण की थीं। इसके बाद उन्होंने अनेक क्षेत्रों में बिहार किया और जैनधर्मका ठोस प्रचार किया। अनेक पथ भ्रान्त पुरुषों को सच्चे पथ पर लगाया।
उनके समवशरणमें कुम्भार्प आदि तीस गणधर थे, छह सौ दश श्रुतकेवली थे, पैंतीस हजार आठसौ पैंतीस शिक्षक थे, अट्ठाईस सौ अवधिज्ञानी थे, इतने ही केवलज्ञानी थे, चार हजार तीन सौ विक्रिया ऋद्धिके धारक थे, दो हजार पचपन मनः पर्यय ज्ञानी थे और एक हजार छह सौ बादी थे। इस तरह सब मिलाकर अर्द्ध लक्ष---पचास हजार मुनिराज थे । यलिला आदि साठ हजार आर्यिकायें थी, एक लाख साठ हजार श्रावक थे, तीन लाख श्राविकायें थीं असंख्यात देव देवियां और संख्यात तीर्यच थे।
जब उनकी आयु एक माहकी अवशिष्ट रह गई तब उन्होंने सम्मेदशिखर पर पहुंचकर एक हजार मुनियोंके साथ प्रतिमा योग धारण कर लिया
और वहींसे चैत्र कृष्ण अमावास्याके दिन रेवती नक्षत्र में रात्रिके पहले पहर में मोक्ष प्राप्त किया । देवोंने आकर उनके निर्वाण क्षेत्रकी पूजा की तथा अनेक उत्सव मनाये । श्री अरनाथभी पहलेके दो तीर्थंकरोंकी तरह तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती और कामदेव इन तीन पदवियोंके धारक थे।
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भगवान् मल्लिनाथ मोह मल्ल मद भेदन धीरं कीर्तिमान मुखरीकृत वीरम् । धैर्यख विनिपातित मारं तं नमामि व मल्लिकुमारम् ॥-लेखक
"जो मोह-मल्लके भेदन करनेमें धीरे-वीर हैं, जिन्होंने अपनी कीर्ति गाथाओंसे वीर मनुष्योंको वाचालित किया है और जिन्होंने धैर्य रूप कृपाणसे कामदेवको नष्ट कर दिया है मैं उन मल्लिकुमारको नमस्कार करता हूँ।"