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१८.
पोलीस तीर्थर पुराण
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लिखे अनुसार उत्तर देने लगा
इसी जम्यूद्वीपके ऐरावत क्षेत्रमें रनपुर नामका एक नगर है उसमें किसी : समय भद्र और धन्य नामके दो सहोदर-सगे भाई रहते थे। वे दोनों गाड़ी चलाकर अपना पेट पालते थे। एक दिन उन दोनों में श्रीनदीके किनारे एक थैलके लिये लड़ाई हो पड़ी जिसमें वे दोनों एक दूसरेको मारकर काश्चन नदी के किनारे श्वेतकर्ण और नामकर्ण नामके जङ्गली हाथी. हुए। वहां भी वे दोनों पूर्वभवके घेरसे आपसमें लड़कर मर गये जिससे अयोध्या नगर में किसी नन्दि मित्र ग्वालाके घर पर उन्मत्त भैंसे हुए । वहां भी दोनों लड़कर मर गये मर कर उसी नगरमें शक्तिवरसेन और शब्दवरसेन नामके राजकुमारोंके यहीं मेढ़े हुए। वहां भी दोनों लड़कर मरे और मर कर ये मुर्गे हुए हैं ये दोनों , पूर्वभवके घेरसे ही आपसमें लड़ रहे हैं। उसी समय दो विद्याधर आकर उन मुर्गाओंका युद्ध देखने लगे। तब राजा घनरथने मेघरथसे पूछा कि ये लोग कौन हैं ? और यहां कैसे आये हैं ? तप मेघरथने कहा कि महाराज ! सुनिये ।।
'जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें जो विजया पर्वत है उसकी उत्तर श्रेणीमें एक : | कनकपुर नामका नगर है। उसमें गरुड़वेग विद्याधर राज्य करता था। उसकी रानीका नाम धृतिषणा था। उन दोनोंके दिवि तिलक और चन्द्रतिलक नामके । दो पुत्र थे । एक दिन वे दोनों भाई सिद्धकूटकी बन्दनाके लिये गये। वहींपर उन्हें दो चारण ऋद्धिधारी मुनियों के दर्शन हुए । विद्याधर पुत्रोंने विनय सहित नमस्कार कर उनसे अपने पूर्वभव पूछे। तय उनमेंसे बड़े मुनिराजने कहा कि पहले 'पूर्वधातकी खण्डद्वीपके ऐरावत क्षेत्रमें स्थित निलकपुर नामके नगरमें . एक अभयघोष राजा राज्य करता था। उसकी स्त्री का नाम सुवर्ण तिलक था तुम दोनों अपने पूर्वभवमें उन्हीं राजदम्पतिके विजय और जयन्त नामके पुत्र थे। कारण पाकर तुम्हारे पिता अभयघोष संसारसे विरक्त होकर मुनि हो गये मुनि होकर उन्होंने कठिन तपस्याकी और सोलह कारण भावनाओं का चिन्त. बन कर तीर्थकर बन्ध किया। फिर आयुके अन्तमें मरकर सोलहवें स्वर्गमें अच्युतेन्द्र हुआ है। तुम दोनों विजय और जयन्त भी आयुके अन्तसे जीर्ण शरीरको छोड़कर ये दिवितिलक और चन्द्रतिलक विद्याधर हुए हो। तुम्हारे