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*बौनी लीवर पुराण*
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पूर्वभवके पिता अभय घोष स्वर्गसे चयकर पुण्डरीकिणी नगरीमें राजा हेमांगद
और सनी मेघमालिनीके धनरथ नामके पुत्र हुए हैं। वे इस समय अपने पुत्रपौत्रोंके साथ मुर्गाओंका युद्ध देख रहे हैं इस तरह मुनिराजके मुखसे आपके साथ अपने पूर्वभवोंका सम्बन्ध सुनकर ये दोनों विद्याधर आपसे मिलने के लिये आये हैं। मेघरथके वचन सुनकर घनरथ तथा समस्त सभासद अत्यन्त प्रसन्न हुए उसी समय दोनों विद्याधरोंने राजा घनरथ और राजकुमार मेघरथका खूब सत्कार किया। दोनों मुर्गाने भी अपने पूर्वभव सुनकर परस्परका बैरभाव छोड़ दिया । और सन्यास पूर्वक मरण किया जिससे एक भूत रमण नामके वनमें तम्रि चूलं नामका देव हुआ और दूसरा देव रमण नामके घनमें कनक चूल नामका व्यन्तर देव हुआ। वहां जब उन देवोंने अवधि ज्ञानसे अपने पूर्वभवों का विचार किया तब उन्होंने शीघ्र ही पुण्डरीकिणी पुरी आकर राजकुमार मेघरैथका खूब सत्कार किया और अपने पूर्वभवोंका सम्बन्ध बतलाया। इसके बाद उन व्यन्तर देवोने कहा कि राजकुमार ! आपने हमारे साथ जो उपकार किया है हम उसका बदला नहीं चुका सकते । पर हम यह चाहते हैं कि आप लोग हमारे साथ चल कर मानुषोत्तर पर्वत तककी यात्रा कर लीजिये । राजकुमार मेघरथ तथा महाराज धनरथकी आज्ञा मिलने पर देवोंने सुन्दर विमान बनाया और उसमें समस्त परिवार सहित राजकुमार मेघरथको बैठाकर उसे
आकाशमें ले गये। वे देव उन्हें कम क्रमसे भरत हैमवत आदि क्षेत्रों, गङ्गा सिन्धु आदि नदियों, हिमवन् मेक आदि पर्वतों, पन महापन आदि सरोवरों तथा अनेक देश और नगरियोंकी शोभा दिखलाते हुये मानुषोत्तर पर्वत पर ले गये । कुमार मेघरय प्रकृतिकी अद्भुत शोभा देखकर बहुतही प्रसन्न हुआ उसने समस्त अकृत्रिम चैत्यालयोंकी बन्दनाकी, स्तुतिकी और फिर उन्हीं देवोंकी सहायतासे अपने मगर पुण्डरीकिणीपुरको लौट आया। घर आनेपर देवोंने उसे अनेक वस्त्र आभूषण मणिमालायें आदि भेंटकी और फिर अपने अपने स्थानों पर चले गये। : किसी एक दिन कारण पाकर महाराज पनरथका हृदय विषय वासनाओं से विस्त हो गया। उन्होंने बारह भावनाओंका चिन्तवन कर अपने वैराग्यको