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* चोयोस तीर्थकर पुराण *
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का अध्ययन किया और दर्शन विशुद्धि आदि सोलह भावनाओंका चिन्तवन कर तीर्थङ्कर प्रकृतिका यन्ध किया। आयुके अन्त में सन्यास पूर्वक शरीर छोड़ कर मुनिराज सिंहरथ सर्वार्थसिद्धिके विमान में अहमिन्द्र हुआ। वहां उसे तैतीस सागरकी आयु प्राप्त हुई थी, उसका शरीर एक हाथ ऊंचा था, शुक्ल लेश्या थी। उसे जन्मसे ही अवधि ज्ञान था। वह तैतीस हजार वर्ष बाद मानसिक आहार ग्रहण करता और तैतीस पक्ष बाद श्वासोच्छास लेता था। वहां वह अपना समस्त समय तत्त्व चर्चा में ही विताता था। यही अहमिन्द्र आगेके भवमें कथानायक भगवान् कुन्थुनाथ होगा।
[२] वर्तमान परिचय जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें एक कुरु जाङ्गल नामका देश है। उसके हस्तिनापुर नगरमें कुरुवंशी और काश्यप गोत्री महाराज शूरसेन राज्य करते थे। उनकी महारानीका नाम था श्री कान्ता। जब ऊपर कहे हुए अहमिन्द्रकी आयु केवल छह महीनेकी बाकी रह गई तबसे देवोंने महाराज शूरसेनके घरपर रत्नोंकी वर्षा करनी शुरू कर दी। उसी समय श्री ही धृति, कीर्ति बुद्धि आदि देवियां आकर महारानीकी सेवा करने लगीं। श्रावण कृष्ण एकादशी. के दिन कृतिका नक्षत्र में रात्रिके पिछले पहर श्री कान्ताने सोलह स्वप्न देखें ।
उसी समय उक्त अहमिन्द्रने सर्वार्थसिद्धिसे चयकर उसके गर्भमें प्रवेश किया। सवेरा होते ही रानीने राजासे स्वप्नोंका फल पूछा। तब उन्होंने कहा कि आज तुम्हारे गर्भमें किसी जगत्पूज्य तीर्थङ्कर बालकने प्रवेश किया है। नव माह बाद तुम्हारी कूखसे तीर्थङ्कर वालकका जन्म होगा। समस्त देव देवेन्द्र उसे नमस्कार करेंगे । ये सोलह स्वप्न उसीका अभ्युदय बतला रहे हैं। पतिदेवके मुंहसे स्वप्नोंका फल और भावी पुत्रका प्रभाव सुनकर रानी श्रीकांता बहुत ही हर्षित हुई । उसी वक्त देवोंने आकर स्वर्गीय वस्त्राभूषणोंसे राजा रानीकी पूजा की तथा उनके भवनमें अनेक उत्सव मनाये। जव गर्भके नौ माह सुखसे व्यतीत हो गये तब महारानी श्रीकान्लाने बैशाख शुक्ला प्रतिपदा - ( परिवा) के दिन कृतिका नक्षत्र में पुत्र उत्रन्न किया। पुनके जन्मसे क्षण
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