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* चौबीस तीर्थकर पुराण
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मेघरथकी ओर देखा । तब उसने भी कहा कि हां, पहलेकी अपेक्षा तुम्हारे रूपमें अवश्य कमी हो गयी है । पर बहुत ही सूक्ष्म । इसके बाद दोनों कन्या
ओंने देवी वेषामें प्रकट होकर सबे रहस्य प्रकट कर दिया और उसके रूपकी प्रशंसा करती हुई वे स्वर्गको वापिस चली गई। अपने रूपमें कमी सुनकर प्रियमित्राको बहुत दुःख हुआ पर राजा मेघाथने मीठे शब्दों में उप्तका वह दुःख दूर कर दिया। ' ___ एक दिन मेघरथके पिता भगवान धनरथ समवसरण सहित विहार करते हुए पुण्डरीकिणी पुरीके मनोहर नामक उद्यानमें आये। जब मेघरथको उनके आनेका समाचार मिला तो वह उसी समय दृढ़रथ तथा अन्य परिवारके लोगों के साथ उनकी बन्दनाके लिए गया और वहां साष्टाङ्ग प्रणामकर मनुष्योंके कोठेमें बैठ गया। उस समय भगवान धनरथ उपासकाध्ययन-श्रावकाचारका कथन कर चुकनेके बाद उन्होंने चतुर्गति रूप संसारके दुःखोंका वर्णन किया जिसे सुनकर राजा मेघरथका हृदय संसारसे एकदम डर गया। उसने उसी समय संयम धारण करने का निश्चय कर लिया और घर आकर छोटे भाई दृढ़रथको राज्य देने लगा। पर दृढ़रथने कहा कि आप जिस चीजको दुरी समझ कर छोड़ रहे हैं उसे मैं क्यों ग्रहण करूं? मेरा भी हृदय सांसारिक वासनाओं से ऊब गया है । इसलिए मैं इस भौतिक राज्यको ग्रहण नहीं करूंगा। जब दृढ़रथने राज्य देनेसे निषेध कर दिया तब उसने अपने मेघसेन पुत्रके लिए राज्य दे दिया और आप अनेक राजाओंके साथ वनमें जाकर दीक्षित हो गया मुनि हो गया । छोटे भाई दृढ़रथने भी उसीके साथ दीक्षा ले ली । राजा मेघरथने मुनि धनकर कठिनसे कठिन तपस्याएं कीं और दर्शन विशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओंका चिन्तवन किया जिससे उसके तीर्थकर नामक महा पुण्य प्रकृतिका वन्ध हो गया। आयुके अन्त में मुनिराज मेघरथने नम स्तिलक पर्वतपर एक महीनेका प्रायोपगमन सन्यास धारण कर शान्तिसे प्राण छोड़े जिससे सर्वार्थ सिद्धि विमानमें अहमिन्द्र हुए। वहां उनकी आयु तैतीस सागर की थी, शरीरकी ऊंचाई एक अरात्रि--एक हाथकी थी । लेश्या शुक्ल थी। वे तेतीस हजार वर्ष वाद , आहार लेते और तेतीस पक्ष वाद श्वासो
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