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* चौबीस तीर्थक्षर पुराण *
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एक हजार राजाओंके साथ दैगम्वरी दीक्षा धारण कर ली। दीक्षा धारण करते समय ही वे तेला -तीन दिनके उपवासकी प्रतिज्ञा कर चुके थे इसलिये लगातार तीन दिन तक एक आसन से ध्यान मग्न होकर बैठे रहे । ध्यानके प्रतापसे उनकी विशुद्धता उत्तरोत्तर बढ़ती जाती थी इसलिये उन्हें दीक्षा लेने के बाद ही चौथा मनः पर्यय ज्ञान प्राप्त हो गया था। जब तीन दिन समाप्त हुए तब वे मध्याह्नसे पहले आहारके लिये सौमनस नगरसें गये । वहां उन्हें 'द्युम्न द्युति' राजाने पडगाहकर योग्य-समयानुकूल आहार दिया। पात्रदानके प्रभावसे राजा द्युम्नद्य तिके घर देवोंने पंचाश्चर्य प्रकट किये । भगवान् सुमति नाथ आहार लेकर वनको वापिस लौट आये और फिर आत्म ध्यानमें लीन हो गये। __इस तरह कुछ कुछ दिनोंके अन्तरालसे आहार ले कठिन तपश्चर्या करते हुए जव बीस वर्ष बीत गये तब उन्हें प्रियंगु वृक्षके नीचे शुक्ल ध्यानके प्रतापसे घातिया कर्माका नाश हो जाने पर चैत्र सुदी एकादशीके दिन मघा नक्षत्र में सायंकालके समय लोक-आलोकको प्रकाशित करने वाला केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। देव, देवेन्द्रोंने आकर भगवान्के ज्ञान कल्याणक का उत्सव मनाया। अलकाधिपति-कुवेरने इन्द्रकी आज्ञा पाते ही समवसरणकी रचना की। उसके मध्यमें सिंहासन पर अचल स्पर्श रूपसे विराजमान हो करके वली सुमति नाथने दिव्य ध्वनिके द्वारा उपस्थित जन समूहको धर्म, अधर्मका स्वरूप बतलाया। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छह द्रव्योंके स्वरूपका व्याख्यान किया। भगवान के मुखार बिन्दसे वस्तुका स्वरूप समझकर वहां बैठी हुई जनताके मुंह उस तरह हर्षित हो रहे थे जिस तरह कि सूर्य की किरणोंके स्पर्शसे कमल हर्षित हो जाते हैं। व्याख्यान समाप्त होते ही इन्द्रने मधुर शब्दोंमें उनकी स्तुति की और आर्यक्षेत्रों में बिहार करनेकी प्रार्थना की। उन्होंने आवश्यकतानुसार आर्य क्षेत्रोंमें विहार कर समीचीन धर्मका खूब प्रचार किया। ____ भगवानका विहार उनकी इच्छा पूर्वक नहीं होता था। क्यों कि मोहनीय कर्मका अभाव होनेसे उनकी हर एक प्रकारकी इच्छाओं का अभाव हो गया