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* चौबीस तोथङ्कर पुराण *
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से बाल तीर्थंकरको लेकर मेरु पर्वत पर गये । वहां उन्होंने पाण्डुक बनमें पाण्डुक शिला पर विराजमान कर जिन वालकका क्षीर सागरके जलसे महाभिषेक किया। वहीं गद्य पद्यमयी भाषासे उनकी स्तुति की। अनन्तर वहांसे वापिस आकर उन्होंने जिन बालकको माताकी गोदमें दे दिया। बालकका मुखचन्द्र देखकर माता पृथ्वोषणाका आनन्द सागर लहराने लगा। महाराज सुप्रतिष्ठकी सलाहसे इन्द्रने बालकका नाम सुपार्श्व रक्खा। उसी समय इन्द्रने अपने ताण्डव नृत्यसे उपस्थित जनताको अत्यन्त आनन्दित किया था। जन्मोत्सवके उपलक्ष्य में बाराणसी पुरीको जो सजावटकी गई थी उसके सामने पुरन्दर पुरी-अमरावती बहुत फीकी मालूम होती थी। उत्सव मनाकर देव लोग अपने अपने स्थानों पर वापिस चले गये। पर इन्द्रकी आज्ञासे कुछ देव बालक का रूप धारणकर हमेशा भगवान् सुपार्श्वनाथके पास रहते थे जो कि उन्हें तरह तरहकी चेष्टाओंसे आनन्दित करते रहते थे । महाराज सुप्रतिष्ठके घर बालक सुपार्श्वनाथके लालन पालन में कोई कमी नहीं थी, फिर भी इन्द्र स्वर्ग से मनो-विनोदके लिये कल्पवृक्षके फूलों की मालाएं, मनोहर आभूषण और अनोखे खिलौने आदि भेजा करता था। ___बाल सुपार्श्वनाथ भी दोयजके चन्द्रमाकी तरह बढ़ने लगे । उनके मुंह पर हमेशा मन्द मुसकान रहतो थो । धीरे धोरे समय बीतता गया। भगवान् सुपार्श्वनाथ बाल्य अवस्था पार कर कुमार अवस्थामें पहुंचे और फिर कुमार अवस्था भी पार कर यौवन अवस्थामें पहुंचे। . __ छठवें तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभके मोक्ष जानेके बाद नौ हजार करोड़ सागर बीत जाने पर श्री सुपार्श्वनाथ हुए थे। उनकी आयु बीस लाख पूर्व की थी और शरीरकी ऊंचाई दो सौ धनुष की थी। वे अपनी कान्तिसे चन्द्रमाको भी लजित करते थे। जन्मसे पांच लाख पूर्व बीत जाने पर उन्हें राज्य मिला । राज्य पाकर उन्होंने प्रजाका पालन किया । वे हमेशा सज्जनोंके अनुग्रह और दुर्जनोंके निग्रहका ख्याल रखते थे। उनका शासन अत्यन्त लोकप्रिय था इसलिये उन्हें जीवनमें किसी शत्रु का सामना नहीं करना पड़ा था। सुप्रष्ठित महाराजने आर्य-कन्याओंके साथ इनका विवाह किया
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NASHAMALAMAALALA
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