________________
५ चौवीस तीर्थावर पुराण *
Rata
n deindussaint
m
-
-
-
-
-
REPORT
गुणोंसे परिचित थे। शरद ऋतुके चन्द्रमाकी तरह उनका निर्मल यश समस्त देशमें फैला हुआ था। वे अत्यन्त प्रतापी होकर भी माधु स्वाभावी पुरुप थे ।
एक दिन महाराज पद्मगुल्म राज सभामें बैठे हुए थे कि वनमालीने आम के घौर, कुन्दकुड्मल, और केशर आदिके फूल सामने रखकर कहा --"महाराज ! ऋतुराज वसन्तके आगमनसे उद्यानकी शोभा बड़ी ही विचित्र हो गई है। आमोंमें बौर लग गये हैं, उनपर बैठी हुई कोयल मनोहर गीत गाती है, कुन्दके फूलोंसे सब दिशाएं सफेद सफेद हो रही है, मौलिश्रीके सुगन्धित फलोंपर मधुप गुजार कर रहे हैं. तालाबों में कमल के फूल फूल रहें और उनकी पीली केशरसे तालाबोंका समस्त पानी पीला हो रहा है। उद्यानकी प्रत्येक वस्तुएं आपके शुभागमनकी आशंसामें लीन हो रही है।"
बनमालीके मुग्लसे वनमें वसन्तकी शोभामा वर्णन सुनकर महाराज पद्मगुल्म बहुत ही हर्पित हुए। उसी समय उन्होंने वनमें जाकर वसन्तोत्सव मनानेकी आज्ञा जारी कर दी जिससे नगरके समस्त पुरुष अपने अपने परिवार के साथ वसन्तका उत्सव मनानेके लिये वनमें जा पहुंचे। राजा पद्मगुल्म भी अपनी रानियों और मित्र वर्गके साथ बनमें पहुंचे और वहीं रहने लगे। उन दिनों में यहां नृत्य, संगीत आदि बड़े बड़े उत्सव मनाये जा रहे थे इसलिये क्रम क्रमसे वसन्तके दो माह व्यतीत हो गये पर राजाको उसका पता नहीं चला। जब धीरे धीरे वनसे बसन्तकी शोभा विदा हो गई और ग्रीष्मकी तप्त लू चलने लगी तव राजाका उस ओर ख्याल गया। वहां उन्होंने वसन्त की खोजकी पर उसका एक भी चिन्ह उनकी नजरमें नहीं आया। यह देखकर महाराज पद्मगुल्मका हृदय विपयों से विरक्त हो गया। उन्होंने सोचा कि 'ससारके सब पदार्थ इसी बसन्तके समान क्षण 'सडर है। मैं जिसे नित्य समझकर तरह २ की रंगरेलियां कर रहा था आज वही बसन्त यहां नजर नहीं आता । अव न आमों में बौर दिखाई पड़ रहा है और न कहीं उनपर कोयलकी मीठी आवाज सुनाई दे रही है। अब मलया निलका पता नहीं है किन्तु उसकी जगहपर ग्रीष्मकी यह तप्त लू वह रही है। ओह ! अचेतन चीजों में इतना परिवर्तन ! पर मेरे हृदयमें, भोग विलासों में कुछ भी परिवर्तन नहीं
-
-
-