________________
• चौबीस तीथङ्कर पुराण *
उन्होंने अपने सिवाय सोमप्रभ, हरि. अकम्पन और काश्यप नामके चार महा माण्डलिक राजाओंका भी राज्याभिषेक कराया था। उन चारों माण्डलिक राजाओंमें प्रत्येकके चार चार हजार मुकुट बद्ध राजा आधीन थे। आदिनाथने इन राजाओंको अनेक प्रकारके दण्ड विधान सिखलाकर राज्यका भार सौंप दिया था और आप महा मण्डलेश्वर होकर सबकी देख भाल किया करते थे। भगवान आदिनाथने सोमप्रभको 'कुरुराज' नामसे पुकारा था और उनके वंशका नाम कुरु वंश रक्खा था। हरिको 'हरिकान्त' नामसे सम्बोधित किया था और उनके वंशका नाम हरिवंश रक्खा था । अकम्पनको 'श्रीधर' नामसे प्रख्यात किया था और उनके वंशका नाम नाथ वंश रक्खा था। एवं काश्यपको 'मघवा' नामसे पुकारा था और उनके वंशका नाम उग्र वंश रक्खा था। इसके सिवाय कच्छ महाकच्छ आदि राजाओंको भी वृषभेश्वरने अच्छे अच्छे देशोंका राजा बना दिया था। अपने पुत्रोंमें ज्येष्ठ पुत्र भरतको युवराज बनाया तथा शेष पुत्रोंको भी योग्य पदोंपर नियुक्त किया था।
भगवान् वृषभनाथने समस्त मनुष्योंको इक्षु-ईखके रसका संग्रह करनेका उपदेश दिया था इसलिये लोग उन्हें इक्ष्वाकु कहने लगे थे। उन्होंने प्रजा पालनके उपाय प्रचलित किये थे इसलिये उन्हे प्रजापति कहते थे। उन्होंने अपने वंशकुलका उद्धार किया था इसलिये लोग उन्हें कुलधर कहते थे। वे काश्य अर्थात् तेजके अधिपति थे इसलिये लोग उन्हें काश्यप कहते थे। वे कृत युगके प्रारम्भमें सबसे पहले हुए थे इसलिये लोग उन्हें आदि ब्रह्मा नामसे पुकारते थे । अधिक कहांतक कहें, उस समयकी प्रजाने उनके गुणोंसे विमुग्ध होकर कई तरहके सुन्दर सुन्दर नाम रख लिये थे।
उनके राज्य कालमें कभी किसी जगह राजाओंमें परस्पर कलह नहीं हुई। सब देश खूब सम्पन्न थे कहीं भी ईति भीतिका डर नहीं था, सभी लोग सुखी थे। वहांका प्रत्येक प्राणी राज राजेश्वर भगवान् वृषभदेवके राज्यकी प्रशंसा किया करता था। इस तरह उन्होंने तिरेसठ लाख पूर्व वर्षतक राज्य किया। सो उनका वह विशाल समय पुत्र पौत्र आदिका सुख भोगते हुए सहज हीमें व्यतीत हो गया था।