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* चौषोस तीर्थक्षर पुराण *
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बढ़ई ) के द्वारा बनाये गये रथपर बैठे हुए थे। उनके मस्तकपर रत्न खचित सोनेका मुकुट चमक रहा था । शिरपर मफेद छन लगा हुआ था और दोनों
ओर चमर ढोले जा रहे थे। बन्दीगण गुणगान कर रहे थे। अनेक हाथी, घोड़ा, रथ और प्यादोंसे भरी हुई सम्राटकी सेना बहुत ही भली मालूम होती थी। ____ उस समय लोगोंके पदाघातसे उड़ी हुई धूलिने सूर्यके प्रकाशको ढक लिया था, जिससे ऐसा मालम होता था मानो सूर्य भरतके प्रतापसे पराजित होकर कहींपर जा छिपा है । सैनिकों के हाथों में अनेक तरहके आयुध हथियार चमक रहे थे। भरत सम्राटका सैनिक बल देखने के लिये आये हुए देव और विद्याधरोंके विमानोंसे समस्त आकाश भर गया था। वह सेना अयोध्यापुरीसे निकलकर प्रकृतिकी शोभा निहारती हुई मैदानमें द्रुतगतिसे जाने लगी थी। बीच बीच में अनेक अनुयायी राजाअपनी सेना सहित भरतके साथ मिलते जाते थे इसलिये वह सेना नदीकी भांति उत्तरोत्तर बढ़ती जाती थी। बहुत कुछ मार्ग तय करनेपर भरतेश गङ्गा नदीके पास पहुंचे। गङ्गाकी अनूठी शोभा देखकर भरतकी तबियत बाग बाग हो गई। गङ्गा नदीने शीतल जल कणोंसे मिली हुई और सरोजगन्धसे सुवासित मन्द समीरसे उनका स्वागत किया। भरत ने वह दिन गङ्गा नीरपर हो बिताया। भरत तथा सेनाके ठहरनेके लिये स्थपतिने अनेक तम्बू-कपड़ेके पाल तैयार कर दिये थे जिनसे ऐसा मालूम होता था कि भरतके विवाहसे दुःखी होकर अयोध्यापुरी ही वहां पहुंच गई है। दूसरे दिन विजया गिरिके समान अत्यन्त ऊंचे विजयाध नामक हाथीपर बैठकर सम्राट्ने समस्त सेनाके साथ गङ्गाके किनारे किनारे प्रस्थान किया। चण्डवेग नामक दण्डके प्रतापसे समस्त रास्ता पक्की सड़कके समान साफ होता जाता था इसलिये सैनिकों को चलने में किसी प्रकारका कष्ट नहीं होने पाता था। बीच बीचमें अनेक नर पाल मुक्ताफल, कस्तूरी, सुवर्ण, चांदी, आदिका उपहार लेकर भरतेशसे भेंट करनेके लिये आते थे। इस तरह कुछ दुरतक चलनेके बाद वे गंगा द्वारपर पहुंचे। वहांपर उपसागरकी अनुपम शोभा देखकर वे बहुत ही प्रसन्न हुए। फिर क्रम पूर्वक स्थल मार्गसे वेदी द्वारमें
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