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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
कैलाश गिरि उस दिनसे सिद्ध क्षेत्र नामसे प्रसिद्ध हो गया। भरतने वहाँपर चौबीस तीर्थंकरोंके सुन्दर मन्दिर बनवाकर उनमें मणिमयो प्रतिमाएं विराजमान करायी थीं।
एक दिन वे दर्पणमें अपना मुंह देख रहे थे कि उनकी दृष्टि सफेद बालों पर पड़ी। दृष्टि पड़ते ही उनके हृदयमें वैराग्य सागर लहरा पड़ा। उन्होंने तपको ही सच्चे कल्याणका मार्ग समझकर अर्ककीर्ति के लिये राज्य दे दिया और स्वयं गणीन्द्र वृषभसेनके पास जाकर दीक्षा ले ली। भरतका हृदय इतना अधिक निर्मल था कि उन्हें दीक्षा लेनेके कुछ समय बाद ही केवल ज्ञान प्राप्त हो गया । केवली भरतने भी जगह जगह घूमकर धर्मका प्रचार किया और अन्तमें कर्म शत्रुओंको नष्टकर आत्म स्वातन्त्र्य मोक्ष प्राप्त किया। वृषभसेन अनन्त विजय, अनन्तवीर्य, अच्युत, वीर, वरवीर, श्रेयांस, जयकुमार आदि गणधरोंने भी काल क्रमसे मोक्ष लाभ किया । इस तरह प्रथम तीर्थंकर भगवान वृषभनाथका पवित्र चरित्र पूर्ण हुआ। इनके बैलका चिन्ह था।
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