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* चौबीस तीर्थकर पुराण *
उससे कुछ हानि तो न होगी? यह कहकर रात्रिके देखे हुए स्वप्न भी कह सुनाये और उनका फल जाननेकी इच्छा प्रकट की। भरतका प्रश्न समाप्त होते ही भगवानने दिव्य घाणीमें कहा
"पूजा द्विजानां शृणु वत्स ! साध्वी, कालान्तरे प्रत्युत दोष हेतुः । काले कलौजाति मदादिमेते, बैरं करिष्यन्ति यतः सुमार्गे ॥ -- अहंहास
वत्स ! यद्यपि इस समय ब्राह्मणों की पूजा श्रेयस्करी है उससे कोई हानि नहीं है लथापि कालान्तरमें वह रोषका कारण होगी, यहो लोग कलिकालमें समीचीन मार्गके विषयमें जाति आदिके अहंकारसे विद्वोष करेंगे , यह सुनकर भरतने कहा-'यदि ऐसा है तब मुझे इन्हें विध्वंस-नष्ट करने में क्या देर लगेगी ? मैं शीघ्र ही ब्राह्मण वर्णकी दृष्टि मिटा दूंगा'। तब उन्होंने कहा'नहीं, धर्म सृष्टिका अतिकम करना उचित नहीं है, इसके बाद उन्होंने जो स्वप्नोंका फल बतलाया था वह यह है -'अये वत्स! 'पृथ्वीतलमें बिहार करनेके बाद पर्वतकी शिखरोंपर बैठे हुए तेईस सिंहोंके देखनेका फल यह है कि प्रारम्भसे तेइस तीर्थकरोंके समयमें दुर्णयकी उत्पत्ति नहीं होगी, पर जो 'तुमने दूसरे स्वप्नमें एक सिंह बालकके पास हाथी खड़ा देखा है उससे मालूम होता है कि अन्तिम तीर्थकर महावीरके तीर्थमें कुलिङ्गी साधु अनेक दुर्णय प्रकट करेंगे। : हाथीके भारसे जिसकी पीठ भग्न हो गई है ऐसे घोड़े के देखनेसे यह प्रकट होता है कि दुषम पंचम कालके साधु तपका भार धारण नहीं कर सकेंगे। सूखे पत्ते खाते हुये बकरोंका देखना बतलाता है कि कलिकालमें मनुष्य सदाचारको छोड़कर दुराचारी हो जायेंगे।
.मदोन्मत्त हाथीकी पीठपर बैठा हुआ बन्दर बतलाता है कि दुःषम कालमें अकुलीन मनुष्य राज्य शासन करेंगे। कौओंके द्वारा उल्लुओंका मारा जाना बतलाता है कि कालान्तरमें मनुष्य सदा सुखद जैन धर्मको छोड़कर दूसरे मनोंका अवलम्बन करने लगेंगे। नृत्य करते हुए भूतोंके देखनेसे मालूम होता कि आगे चलकर प्रजाके लोग व्यन्नरोंको ही देव समझकर पूजा करेंगे।
जिसका मध्य भाग सूखा हुआ है और आस पास पानी भरा हुआ है