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* चौवीस तीर्थकर पुराण *
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कि मेरु पर्वतके देखनेसे उसके समान उन्नत कोई महापुम्प अपने शुभागमनसे आपके भवनको अलंकृत करेगा और बाकी स्वप्न उन्हीं महापुरुषोंके गुणों की उन्नति बतला रहे हैं। पुरोहितके मुखसे स्वप्नोंका फल सुनकर सोमप्रभ
और श्रेयान्स दोनों भाई हर्षके मारे फूले न समाते थे। प्रातः कालके समय देखे गये स्वप्न शीघ्र ही फल देते हैं। पुरोहितके इन वचनोंने तो उन्हें और भी अधिक हर्षित बना दिया था। राजभवनमें बैठे हुए दोनों भाई उन महापुरुषकी प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि इतनेमें महापुरुष भगवान् आदिनाथ ईर्या समितिसे विहार करते हुए हस्तिनापुर जा पहुंचे। जब वे राज भवनके पास आये तब सिद्धार्थ नामक द्वारपालने राजा सोमप्रभ और युवराज श्रेयान्स कुमारको उनके आनेकी खबर दी। द्वारपालके मुखसे भगवान्का आगमन सुनकर दोनों भाई दौड़े हुए आए और उन्हें प्रणामकर बहुत ही आनन्दित हुए। युवराज श्रेयांस कुमारने ज्योंही भगवानका दिव्य रूप देखा त्योंही उसे जाति स्मरण हो आया । श्रीमती और वजजंघ भवका समस्त वृतान्त उनको आंखोंके सामने ज्योंका त्यों झूलने लगा। पुण्डरीकिणीपुरीको जाते समय रास्ते में सरोवरके किनारे जो मुनि युगलके लिये आहार दिया था वह भी श्रेयान्सको ज्योंका त्यों याद हो गया। यह प्रातः कालका समय आहार देने के योग्य है ऐसा विचार कर उसने उन्हें नवधा भक्ति पूर्वक पड़गाहा और श्रद्धा तुष्टि आदि गुणोंसे युक्त होकर आदि जिनेन्द्र वृषभनाथको आहार देनेके लिये भीतर लिया ले गया। वहां उसने राजा सोमप्रभ और उनकी स्त्री लक्ष्मीमतीके साथ भगवान्के पाणिपात्रमें इक्षुरसकी धाराएं प्रदान की। इस पवित्र दानसे प्रभावित होकरदेवोंने आकाशसे रत्नोंकी वर्षा की, दुन्दुभि बाजे बजाये,पुष्प वर्षाये और जय जय ध्वनिके साथ 'अहो दानम् अहो दानम्' कहते हुए दानकी प्रशंसा की। उस समय सब दिशाएं निर्मल हो गई थीं। आकाशमें मेघका एक टुकड़ा भी नजर नहीं आता था और मन्द सुगन्ध पवन चलने लगा था। महा मुनीन्द्र वृषभेश्वरके लिये दान देकर दोनों भाइयोंने अपने आपको कृतकृत्य समझा । बहुतोंने इस दानकी अनुमोदना की। . ___ आहार ले चुकनेके बाद वृषभदेव बनकी ओर विहार कर गये। उस युग
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