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* चौबीस तीर्थङ्कर पुराण *
राज्यका विभाग करते समय भगवान् वृषभेश्वर आप लोगोंका राज्य मुझे बतला गये हैं सो चलिये, मैं चलकर आपका राज्य आपको दे दूं। इस समय वे ध्यानमें लीन हैं इनके मुखसे आपको कुछ भी उत्तर नहीं मिलेगा" इत्यादि प्रकारसे समझाकर वह धरणेन्द्र उन्हें विमानपर बैठाकर विजयाध पर्वत पर ले गया। पर्वतकी अलौकिक शोभा देखकर दोनों राजपुत्र बहुत ही प्रसन्न हुये।
उस पर्वतकी दो श्रेणियां हैं कि दक्षिण श्रेणि और दूसरी उत्तर श्रेणि । इन दोनों श्रेणियोंपर सुन्दर सुन्दर नगरोंकी रचना है जिसमें विद्याधर लोग रहा करते हैं। वहां पहुंचकर धरणेन्द्रने कहा कि भगवान आप लोगोंको यहांका राज्य देना स्वीकार कर चुके हैं सो आप यहांका राज्य प्राप्त कर देवराजकी तरह अनेक भोगोंको भोगो और इन विद्याधरोंका पालन करो। ऐसा कहकर उसने दक्षिण श्रेणिके साम्राज्यमें नमिका और उत्तर श्रेणिके साम्राज्यमें विनमिका अभिषेक किया, उन्हें कई प्रकारकी विद्यायें दी तथा जनतासे उनका परिचय कराया। नमि विनमि विद्याधरोंका राज्य पाकर बहुत प्रसन्न हुये। धरणेन्द्र कर्तव्य परा कर अपने स्थानको वापिस चला गया।
___ ध्यान करते करते जब छह माह व्यतीत हो गये तब वृषभदेवने अपनी ध्यान मुद्रा समाप्त कर आहार लेनेका विचार किया। यद्यपि उनके शरीरमें जन्मसे ही अतुल्य बल था-वे आहार न भी करते तब भी उनके शरीरमें कुछ शिथिलता न आती तथापि मुनि मार्ग चलानेका ख्याल करते हुये उन्होंने आहार करनेका निश्चय कर गावोंमें बिहार करना शुरू कर दिया। बिहार करते समय वे चार हाथ जमीन देखकर चलते थे और किसीसे कुछ बोलते न थे। यह हम पहले लिख चुके हैं कि उस समयके लोग अत्यन्त भोले थे। आदिनाथके पहले वहां कोई मुनि हुआ ही नहीं था इसलिये वे लोग मुनि मार्गसे सर्वथा अपरिचित थे । वे यह नहीं समझते थे कि मुनियोंके लिये आहार कैसे दिया जाता है। महामुनि आदिनाथ किसीको कुछ बतलाते न थे क्योंकि यह नियम है कि दीक्षा लेनेके बाद जब तक केवल ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता तब -तक तीर्थकर मौन होकर रहते हैं-किसीसे कुछ नहीं कहते। इसलिये जब वे आहारके लिये नगरोंमें पहुंचते तब कोई लोग कहने लगते थे कि हे