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जैनाभास
गोपुच्छक श्वेतवासा द्रविडोयापनीय ।
निष्पिच्छश्चेति से पञ्च जैनाभासाः प्रकीर्तिताः । १) गोपुच्छक (काष्ठा संघ) २) श्वेताम्बर ३) द्राविड ४) यापनीय ५) निपिच्छिक (माथुर) ऐसे पांच प्रकार जैनाभास कहे गये हैं। १) गोपुच्छक ( काष्ठा संघ) -
प्रासीकुमार सेणो णंदियडे विणय सेणा दिक्खिओ। सण्णास भंजणेण अगहिय पुणदिक्खओ जादो ।।३३।। सत्तसए तेवण्णे विक्रम रायस्स मरणपत्तस्स । णंदियड़े बरगामे कट्टो संघो मुणेयन्वी ।।३। णंडियडे वरगामे कुमारसेणो य सत्त्थ विण्णाणी ।
कट्टो दसण भट्टो जादो सल्लेहणा काले ।।३।। आचार्य विनयसेन के द्वारा दीक्षित आचार्य कुमार सेन जो संन्यास से भ्रष्ट होकर पुनः गुरु से दीक्षा न ली और सल्लेखना के समय दर्शन से भ्रष्ट होकर नन्दितट ग्राम में (वि. सं. ७५३ में) काष्ठासंघी हो गए। काष्ठासंघ में मूलसंघ के विरुद्ध सिद्धांत -
कुमार सेन ने मयूर पिछी का त्याग कर तथा चमरी गाय की पूंछ के बालों को ग्रहण कर सारे बागड़ प्रांत में उन्मार्ग का प्रचार किया । उसमें स्त्रियों को पूर्ण दीक्षा देना, क्षुल्लकों की बीर्य चर्चा, मनियोंको कडे बालों की पीछी रखना और रात्रि भोजन त्याग नामक छठे गुणव्रत का विधान किया। उन्होंने आगम, शास्त्र, पुराण प्रायश्चित ग्रंथों को कुछ और ही प्रकार रचकर मूर्ख लोगों में मिथ्यात्व का प्रचार किया । इस संघ में भोपुच्छ की पीछी रखने के कारण इसे गोपुच्छ संघ कहा जाता है। २) श्वेताम्बर संघ -
श्वेतवस्त्रधारी, स्त्रीमुक्ति, केवली कवलाहारी आदि को माननेवाले प्रसिद्ध श्वेताम्बर संत्र का वर्णन स्वयं देवसेन आचार्य भाव संग्रह में वर्णन करेंगे इसलिये उसका विशेष कथन नहीं कर रहे हैं।