Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
- [गकारादि
__ गुल्म, कास, क्षत, श्वास, विद्रधि अरुचि नोट-उपरोक्त मात्रा वर्तमान कालके लिए और व्रणमें-चिरायता, गिलोय, नीमको छाल, अधिक है अतएव आधा माशासे ३ माशे तक बासा, कटेली और धमासेके काथके साथ सेवन सेवन कराना चाहिए। कराना चाहिए।
(१३२१) गुग्गुलुकल्पः (सु.सं.।चि.स्था.अ.५) कण्डू (खुजली), पिडिका, शोफ और सुगन्धि सुलघुः मूक्ष्मस्तीक्ष्णोष्णः कटुको रसः। वातकफकी शान्तिके लिए दारुहल्दी और कटुपाकसरो हृयो गुग्गुलु स्निग्धपिच्छिलः॥ पटोलपत्रके काथके साथ सेवन कराना चाहिए। सनवो वृंहणो वृष्यःपुराणस्त्वपकर्षणः।।
पाण्डु, शोथ, जलोदर और किलास कुष्ठको तैष्ण्योष्ण्यात्कफवातनःसरत्वान्मलपित्तनुत् ॥ नष्ट करने के लिए हर्र, पुनर्नवा, दारुहल्दी, गोमूत्र सौगन्ध्यात प्रतिकोष्ठनः सौक्ष्म्याच्चानलदीपनः । और गिलोय के क्वाथके साथ सेवन करना चाहिए। तम्प्रातत्रिफलादावीपटोलकुशवारिभिः॥
गुग्गुलोर्मात्रा---गुग्गुलु १ कर्ष (१। तोले) पिबेदावाप्य वा मूत्रैः क्षारैरुष्णोदकेन वा। से प्रारम्भ करके १ पल (५ तोले) तककी मात्रा- | जीर्णे यषरसक्षीरैर्भुञ्जानो हन्ति मासतः ॥ नुसार यत्नपूर्वक सेवन कराना चाहिए। प्रथम गुल्मं मेहमुदावर्तमुदरं सभगन्दरम् । सप्ताहमें प्रथमा मात्रा (१ कर्ष), दूसरे सप्ताहमें कृमिकण्ड्वरुचिश्वित्रायदग्रन्थिमेव च ॥ मध्यमा मात्रा और तृतीय सलाहमें उत्तमा मात्रा नाड्याढयवातश्वयथुकुष्ठदुष्टत्रणांश्च सः। सेवन करानी चाहिए।
कोष्ठसन्ध्यस्थिगं वायुं वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा ॥ मध्यमा मात्रा प्रथमा भात्रासे द्विगुण और गुग्गुल, सुगन्धित, लघु, सूक्ष्म, तीक्ष्ण, उष्ण उत्तमा त्रिगुण समझनी चाहिए।
और रसपाकमें कटु तथा सर, हृद्य स्निग्ध और पथ्यः----गुग्गुलु पच जानेपर मुंगके यूष | पिच्छिल है। नवीन गुग्गुलुवंहण, और वृष्य तथा अथवा दूधके साथ षष्ठि (साठी) अथवा शालि | पुरातन अपकर्षक (कृश करनेवाला) होता है। चावलोंका मृदु भात खाना चाहिए।
यह तीक्ष्णता ओर उष्णतासे कफनाशक, गुग्गुलुसेवन फलम् --जो मनुष्य एक वर्ष | सर होनेके कारण मल और पित्त सारक, सुगन्धि पर्यंत क्रमपूर्वक गुग्गुलु सेवन करता है उसे स्थावर | से दुर्गन्धनाशक तथा सूक्ष्मता के कारण अग्नि अथवा जङ्गम विषसे हानि नहीं पहुंच सकती। | दीपक है। वृद्ध पुरुष भी बलिपलित रहित युवकके समान हो । गुग्गुलुको प्रातःकाल एकमास पर्यन्त त्रिजाता है । इसके सेवनसे मेधा, दृष्टि, बल, ओज | फला, दारु हल्दी पटोलपत्र और कुशाके काथ, और वीर्य की वृद्धि तथा, जरा, गुल्म, अष्ठीला, आम- | गोमूत्र, क्षारजल अथवा उष्ण जलके साथ सेवन वात, कुष्ठ, प्रमेह, अश्मरी, शूल, आनाह विसर्प, | करने और उसके पचने पर (मूंगांदिका) यूष तथा ‘रक्तदोष और भूतवाधाका नाश होता है । | दुग्धाहार करनेसे गुल्म, प्रमेह, उदावर्त, उदररोग,
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