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अनुयोगचन्द्रिका टीका. १ ज्ञानस्वरूपनिरूपणम् ___ मनःपर्यवज्ञानमिति । अवनम् अवः । 'अव रक्षण गतिकान्तिप्रीतितृप्त्यवगमाद्यर्थे पु' पठितोऽस्ति, तत्रावगमार्थ माश्रित्य निष्पन्नः । अवः-अवगमः, बोध इत्यर्थः । परिशब्दः सर्वतो भावे, पर्यवः समन्तादववोधः । मनसः पर्यवो मनः पय वः मनोविषयकः समन्तादवबोध इ.यर्थः। मनःपर्यवश्वासौ तज्ज्ञानं चेति मनःपर्यवज्ञानम् । पर्ययः, पर्यायः, एते शब्दा एकार्थवाचाः ।
में समान हैं। अव.धज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम ही अन्तरंग कारण है। अतः ऐसा कहने में कि अवधिज्ञानावःणीय कर्म के क्षयोपशम से अवधिज्ञान की उत्पत्ति चारों गतियों के जीवों को होती है इस प्रकार के कथन में कोई विरोध नहीं है।
मनःपर्य वज्ञान पर्यव यह शब्द परि उप:अव धातु से बना है। अब धातु रक्षण, गति, कान्ति, प्रीति, तृप्ति, अगम आदि अर्थों में पठित हुआ है सो रही पर इन में से अवगम अर्थ लिया गया हैं । अवगम का अर्थ बोध है। "परि" का अर्थ सब प्रकार से है । मन की सब पर्यायों का साक्षात् जानने वाला जो ज्ञान है वह मनः पर्यवज्ञान है। पर्यय पर्याय ये सब शब्द एकार्थवाचक हैं। तात्पर्य इसका यह है कि मनवाले संझी प्राणी-किसी भी वस्तु का चिन्त्वन मनसे करते हैं। चिन्त्वन के समय चिन्तनीय वस्तु के भेद के अनुसार चिन्तनकर्म में प्रवृत्त मन भिन्न २ आकारों को धारण करता रहता है। ये आकृतियां ही मन की पर्याय हैं। इन मन की पर्यायों को साक्षात् जानने वाला ज्ञान मनःपर्यवज्ञान हैं द्रव्य मन और
(४) मन:पर्यज्ञान-परि+अव=५५. 240 रीते 'अव' धातुने 'परि' 6५॥ सापाथी ५यव' ५६ मन्यु छ. 'अव्' धातु २२४. गति, ति, ति, तृप्ति, અવગમ આદિ અર્થોમાં વપરાય છે. અહીં તેને અવગમ અર્થ ગૃહીત થયેલ છે. અવગમ એટલે બે ધ. અને “પરિ એટલે “સર્વ પ્રકારે
“મનના સઘળા પર્યાને સાક્ષાત્ જાણનારૂં જે જ્ઞાન છે, તેનું નામ મનઃ પર્યવજ્ઞાન છે.” પર્યાય અને પર્યાય આ બન્ને શબ્દો સમાનાર્થી છે. આ કથનને ભાવાર્થ નીચે પ્રમાણે છે-મનવાળા છે (સંસી છે) કઈ પણ વસ્તુનું મનની મદદથી ચિત્તવન કરે છે. આ પ્રકારના ચિન્તનકમમાં પ્રવૃત્ત થયેલું મન ભિન્નભિન્ન આકારેને ધારણ કરતું રહે છે. તે આકૃતિઓ જ મનના પર્યાયે છે. મનન એ પર્યાયોને સાક્ષાત જાણુનારૂં જે જ્ઞાન છે તે જ્ઞાનનું નામ જ મન:પર્યવજ્ઞાન છે,