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अनेकान्त
III
सभा में कुछ समय के लिए सन्नाटा रहा । महाराज संस्कृति के २४ वें तीर्थंकर हैं और जगत-कल्याण के लिए अपने प्रामन से उठे और कहने लगे, प्रजाजनो मैंने आप अवतरित हुए हैं । इसलिए मेरा श्राप लोगों से आग्रह है लोगों को यहां आज किस कारण से उपस्थित होने का कि महावीर का दीक्षा कल्याण सारे देश में बड़ी धूम-धाम निमन्त्रण दिया है यह जानने के लिए आप उत्सुक हो रहे से मनाया जाये । इस दिन सामूहिक प्रतीज्ञा की जावे कि होंगे। बात भी ऐसी ही है। आपके हृदयों में तरह २ की हम भविष्य में किसी को हीन दृष्टि से नहीं देखेंगे। न धर्म श्राशाएं अथवा आकांक्षाएँ होगी इसलिए उसे दूर करने साधन में बाधा डालेंगे और न किमी की उन्नति में बाधक के लिए ही आप लोगों को बता रहा है कि राजकुमार बनेंगे। महावीर जो गत ३० वर्षों से हमारी प्राशाओं के केन्द्र वने हुए हैं, ज्ञान साहस एवं बुद्धि में जिनकी गणना सर्व प्रथम
मार्गशीर्ष सुदी दशमी का दिन था । आकाश मार होती है, अब तक जिन्होंने राज्यकार्य में मेरा हाथ बटाया एवं निर्मल था। सूर्य की किरणें न अधिक तेज थी । राजहै तथा इससे ही जो जनता के सर्व प्रिय बन चुके हैं, जिन
कुमार महावीर के दीक्षा कल्याण का पावन उत्सव देखने के
कुमार महावार के दाक्षा कल्याण के विवाह के दिन को देखने के लिए मेरी ही प्रजा नहीं लिए कुराहल
लिए कुण्डलपुरी के बाहर अपार जन मेदनी उमड रही थी। किन्तु पास-पास एवं दूर के सभी देशों की प्रजा श्राशा
भुण्ड के झुण्तु स्त्री पुरुष महावार की शोभा यात्रा में लगाए हुए है, जिनके युवराज पद अभिषेक की प्रतीक्षा में
सम्मिलित होने के लिए गीत गाते हुए जा रहे थे। किसी सारी प्रजा आंखें लगाये हुए है उन राजकुमार महावीर का
को कुछ चिन्ता न थी। सारा नगर तोरण बन्दनवार एवं श्राग्रह है कि उन्हें साधु जीवन स्वीकार करने दिया जाये।
ध्वजा पताकाओं से सजाया गया था। रंग बिरंगी कागज
की मालाओं से सारा मार्ग सुसज्जित था । गुलाब, मोगरा महाराज के इस वचन से सभा में एक दम सन्नाटा छा आदि विविध फूलों की मालाओं की पंकियों से यारा शोभा गया। सारी प्राग्वे महाराज की ओर लग गई और प्रत्येक मार्ग सुगन्धित हो उठा था । बाजार के छज्जों पर महलों के हृदय में गहरी वेदना का अनुभव हुश्रा । लेकिन इसके की खिड़कियों पर बच्चे एवं स्त्रियां हाथ में फूलमाला लिये पहिले कि उपस्थित जन समूह में से कोई आपत्ति प्रावे, हुये महावीर के दर्शनार्थ खड़े थे । सार नगर में एक अभूत. महाराज ने फिर कहना प्रारम्भ किया, मुझे यह सूचित करते पूर्व चहल पहल थी। वृद्धों के मुख से सुना जा रहा था कि हुए हर्ष होता है कि हमने उनके इस श्राग्रह को स्वीकार इस प्रकार का स्वागत अभी तक इसके पहले किसी का भी कर लिया है। आज से चौथे दिन मंगसिर शुक्ला १० हशा न दवा और सुना था। नगर के प्रत्येक चौराहे पर के दिन राजकुमार महावीर जिन दीक्षा लेंगे। वे श्रमण नगारे शहनाई एवं तुरी बज रही थी। सबको अपने प्रिय बन जायेंगे और मामाजिक धार्मिक एवं आर्थिक बोझ से राजकुमार के दर्शनों की उत्कंठा था। जनता पलक पावडे उत्पीडित समाज की सेवा में लग जायेंगे। यद्यपि हमने यह बिहाये हए थी । सभ्रान्त एवं कुलीन स्त्रियां रथों एवं पालफैसला हृदय पर पत्थर रख कर किया है लेकिन आप लोगों कियों में बैठ कर जा रही थी।
को मालूम होगा कि राजकुमार महावीर एक साधारण मानव प्रात: काल के दश बजे होंगे। महाराज सिद्धार्थ एवं । नहीं हैं वे तीर्थकर हैं और उनका जन्म स्वपर कल्याण के माता विशला ने अपने लाडलं राजकुमार को आज अपने लिए हुआ है। वे नहीं चाहते कि देश तथा समाज में किमी सजन नेत्रों से खूब श्राभुषित किया । नवीन एवं बहुमूल्य भी मानव को जाति विशेष अथवा धर्म विशेष के कारण कपड़े अपने ही हाथों से पहनाये। विविध प्रकार के प्राभूषण पददलित किया जावे तथा उससे घृणा की जाये। यद्यपि पहिनाये गये। माथे पर सुन्दर तिलक लगाया गया। माता साधु जीवन अत्यधिक कठिन है। पद पद पर अनेक बाधाएँ ने स्वयं अपने पुत्र की प्रारती उतारी। पांखों में कज्जल हैं लेकिन राजकुमार ने इन सब की परवाह किये बिना ही डाला । पूरा श्रृंगार करते भी क्यों नहीं। वे तीर्थकर थे इस जीवन को अपनाना स्वीकार किया है। हमारे लिए और अहत् बनने जा रहे थे। मोक्ष रूपी तरुणी का उन्हें यह गौरव की बात है कि कुण्डलपुर का राजकुमार श्रमण वरन जो करना था।