________________
७२ ]
अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
भामह की तुल्ययोगिता को उक्त संज्ञा से उपमा-भेद मान कर दण्डी ने तुल्ययोगिता का स्वरूप किञ्चित् भिन्न रूप से निर्धारित किया है।
हेतूपमाः-इसमें एक उपमेय के अनेक उपमान उल्लिखित होते हैं और उनके साथ उपमेय के सादृश्य का हेतु वणित होता है। भरत ने हेतु नामक लक्षण का उल्लेख किया है। उसके साथ एक उपमेय के लिए अनेक उपमान वाली उनकी धारणा को मिला कर हेतूपमा की कल्पना कर ली गयी है।
निष्कर्ष यह है कि दण्डी ने उपमा के जितने भेदोपभेद स्वीकार किये हैं वे सभी परम्परा से विच्छिन्न, नितान्त मौलिक सृष्टि नहीं हैं। पूर्ववर्ती आचार्यों के तत्तदलङ्कारों की धारणा तथा भरत की कुछ लक्षण-धारणा के आधार पर उनमें से अधिकांश के स्वरूप की रचना की गयी है। उद्गम-स्रोत की दृष्टि से दण्डी के उपमा-प्रकारों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है :
(क) नाट्यशास्त्र से गृहीत उपमा-भेद:-प्रशंसोपमा तथा निन्दोपमा नामक उपमा-भेद इस वर्ग में आते हैं, जो इन्हीं नामों से स्वीकृत हैं । भरत की सदृशी उपमा नाम-भेद से गृहीत है। दण्डी ने उसे असाधारणोपमा कहा है।
(ख) भरत के उपमा-भेद के आधार पर किञ्चित् भेद के साथ कल्पित उपमा-भेद:-इस वर्ग के अद्भुतोपमा, अभूतोपमा, असम्भावितोपमा, विक्रियोपमा, उत्प्रेक्षितोपमा आदि उपमा-भेद भरत की कल्पितोपमा के आधार पर तथा मालोपमा, बहूपमा आदि उपमान-संख्या की दृष्टि से किये गये 'एकस्यानेकेन' भेद के आधार पर कल्पित हैं ।
(ग) भामह के स्वतन्त्र अलङ्कार उपमा-भेद में अन्तभुक्तः–भामह के ससन्देह, उपमेयोपमा, श्लेष, तुल्ययोगिता आदि स्वतन्त्र अलङ्कारों को क्रमशः संशयोपमा, अन्योन्योपमा, श्लेषोपमा, तुल्ययोगोपमा आदि संज्ञा से उपमा-भेद में ही परिगणित कर लिया गया है।
(घ) भामह के काव्यालङ्कार में निर्दिष्ट उपमा-भेद स्वीकृतः–मालोपमा, आचिख्यासोपमा आदि उपमा-भेदों का नामोल्लेख भामह ने भी किया था । वे उपमा-भेद 'काव्यादर्श' में सोदाहरण प्रतिपादित हैं।
१. द्रष्टव्य-भरत, ना० शा० १६, १४ का पाठान्तर,
अभिनवभारती, पृ० ३०७