Book Title: Alankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Author(s): Shobhakant Mishra
Publisher: Bihar Hindi Granth Academy

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Page 846
________________ पारिभाषिक शब्दावली : व्याख्या [८१३ नीरक्षीर न्याय-दूध और पानी के मिलने की रीति । दोनों को मिला देने पर दोनों का भेद परिलक्षित नहीं होता। इसी प्रकार सङ्कर में अलङ्कारों की पारस्परिक स्थिति इस रूप में रहती है कि उनका भेद परिलक्षित नहीं होता। निगरण-अप्रधानीकरण। किसी अर्थ को अप्रधान या गौण बना देना निगरण कहलाता है। निगरण का शाब्दिक अर्थ है निगलना। जब किसी का कथन न कर या उसका निषेध कर उसे अप्रधान बना दिया जाता है, तब उसे वस्तु का निगरण कहते हैं। रूपकातिशयोक्ति में विषय का उपादान तहीं होने से उसका निगरण होता है। पृथग्यत्ननिर्वर्त्य-जिसकी योजना के लिए अतिरिक्त श्रम किया जाय उसे पृथग्यत्ननिर्वर्त्य कहते हैं। कवि जहां अपनी अनुभूति को व्यक्त करता हुआ अलग से अलङ्कार-योजना में श्रम करता है, वहाँ पृथग्यत्ननिर्वयं अलङ्कारों की योजना होती है। बिम्बप्रतिबिम्बभाव-जहां वस्तुतः भिन्न धर्मों का पर्यायवाची शब्दों से दो वार कथन होने से वह धर्म अभिन्न-सा जान पड़ता है वहां वस्तुओं में बिम्बप्रतिबिम्बभाव सम्बन्ध माना जाता है। दो अलग-अलग वस्तुएं दो वाक्यों में कथित हों और उनमें तत्त्वतः भिन्न धर्मों का अभिन्न धर्म के रूप में उपस्थापन हो; ये दो बिम्बप्रतिबिम्बभाव के लक्षण हैं। दृष्टान्त अलङ्कार में दो समान धर्म वाली वस्तुओं में बिम्बप्रतिविम्बभाव आवश्यक माना गया है। . यौगपद्य-युगपत् अर्थात् एक साथ होने का भाव योगपद्य कहाजाता है। समुच्चय में अनेक वस्तुओं का योगपद्य होता है अर्थात् अनेक वस्तुओं का एकत्र एक साथ सद्भाव दिखाया जाता है जबकि पर्याय आदि में वस्तुओं का अयोगपद्य अर्थात् क्रम से सद्भाव दिखाया जाता है। . __ वर्णसाजात्य-सजातीय वर्णों का विन्यास वर्ण-साजात्य कहलाता है। समान उच्चारण स्थान से उच्चरित होने वाले तथा समान प्रयल वाले वर्ण सजातीय माने जाते हैं। अनुप्रास के स्वरूप में वर्ण-साजात्य पर विचार किया जाता है। वस्तुप्रतिवस्तुभाव-दो वस्तुओं के तत्त्वतः अभिन्न धर्म का अलगअलग शब्दों से दो वार कथन होने पर दोनों में वस्तुप्रतिवस्तुभाव सम्बन्ध माना जाता है। प्रतिवस्तूपमा में दो वाक्यार्थों में एक ही समान धर्म का दो बार

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