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अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [५५३ उद्देश्य परस्पर विशेषार्पण (वैशिष्ट्य की वृद्धि) या पारस्परिक उपकार ही माना था। भोज ने अन्योन्य में परस्पर उपकार की धारणा प्रकट कर उसके वाच्य, प्रतीयमान तथा उभयात्मक; ये तीन भेद माने हैं। उन्होंने अन्योन्य के तीन और नवीन रूपों की कल्पना की है—(क) अन्योन्य चूलिका,. (ख) अन्योन्य भ्रान्ति तथा (ग) अन्योन्य एकता।' अन्योन्य चूलिका में दो पदार्थों का पारस्परिक उपकार दिखाकर समन्वित रूप से दोनों का अन्योपकार करना दिखाया जाता है। चन्द्रमा से रात्रि और रात्रि से चन्द्रमा का सुशोभित होना दो वस्तुओं-चन्द्रमा और रात्रि के पारस्परिक उपकार का उदाहरण है। अब यदि रात्रि और चन्द्रमा का परस्पर उपकार दिखाते हुए यह कहा जाय कि 'उन दोनों से गगन सुशोभित है' तो इसमें भोज अन्योन्य चूलिका मानेंगे । अन्योन्य भ्रान्ति में दो अलङ्कारों का चमत्कार हैअन्योन्य तथा भ्रान्तिमान का। काले भौंरे को जामुन का पका फल समझकर शुक का उसे खाने के लिए उन्मुख होना और फिर शुक के चञ्चु को किंशुक कुसुम समझ कर भौंरे का उस ओर आकृष्ट होना अन्योन्य भ्रान्ति का उदाहरण माना गया है। इस उदाहरण में अन्योन्य की अपेक्षा भ्रान्ति का चमत्कार अधिक है। अतः, इसे भ्रान्तिमान का ही एक भेद मानना अधिक युक्तिसङ्गत जान पड़ता है। अन्योन्य-एकता में दो पदार्थों की परस्पर एकता को स्थापना की धारणा व्यक्त की गयी है। __मम्मट, रुय्यक, विश्वनाथ, अप्पय्य दीक्षित, जगन्नाथ आदि प्रायः सभी आचार्यों ने एकमत से अन्योन्य में दो वस्तुओं के परस्पर उपकार की धारणा व्यक्त की है। मम्मट तथा रुय्यक ने एक क्रियामुखेन दो वस्तुओं के परस्पर कारण या जनक होने की बात अन्योन्य-लक्षण में कही है ।२ दो में सामान्यतः कार्यकारण या जन्यजनक-भाव रहता है। किन्तु इसमें चमत्कार यह है कि दो
१. अन्योन्यमुपकारो यस्तदन्योन्यं त्रिधा च तत् । वाच्यं प्रतीयमानं च तृतीयमुभयात्मकम् ॥ अन्योन्यचूलिकान्योन्यभ्रान्तिरन्योन्यमेकता। अन्योन्यालंकृतेरन्तस्त्रयमेतदिहेष्यते ॥
-भोज, सरस्वतीकण्ठाभरण ३, २७-२८ २. क्रियया तु परस्परम् । वस्तुनोर्जनोऽन्योन्यम्
-मम्मट, काव्यप्र० १०, १८७ तथा परस्परं क्रियाजननेऽन्योन्यम् । -रुय्यक, अलं० सू०, सं० ४६