Book Title: Alankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Author(s): Shobhakant Mishra
Publisher: Bihar Hindi Granth Academy

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Page 775
________________ ७५२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण अतिरिक्त फल की भी अवान्तर सिद्धि का वर्णन होता है। इस प्रकार अशक्य कार्य का साधन विशेष का व्यावर्तक है।' विशेष और विषम इष्ट साधन करते हुए अनायास अनिष्ट की सिद्धि विषम का एक रूप है । किसी कार्य को करते हुए अन्य अशक्य कार्य को सिद्ध कर देना विशेष का लक्षण है। उक्त विषम-प्रकार से विशेष के इस प्रकार का प्रधान व्यावर्तक अशक्य कार्य-साधन ही है। इसी आधार पर पण्डितराज जगन्नाथ ने दोनों का भेद-निरूपण किया है। विशेष और अतिशयोक्ति अतिशयोक्ति में विषय का विषयी से निगरण होता है; पर विशेष में विषय का निगरण नह होता । अशक्य कार्य-सम्पादन विशेष के तृतीय भेदः का व्यवच्छेदक है। विशेष और रूपक प्राचीन आचार्यों ने रूपक से विशेष का भेद इस आधार पर किया है कि विशेष में रूपक की तरह विषय और विषयी का सामानाधिकरण्य-रहित आरोप नहीं होता। विशेष का अशक्य कार्य-साधन भी व्यवच्छेदक है । विशेष और स्मरण विशेष में एक कार्य को करते हुए किसी अशक्य कार्य के सम्पादन का वर्णन होता है; पर स्मृति में एक वस्तु के ज्ञान से अन्य की स्मृति हो आने का वर्णन होता है । अतः, विशेष का तृतीय भेद स्मरण से स्वतन्त्र है। ५ .. १. अत्र (विशेषालङ्कारें) चाशक्यवस्स्वन्तरनिवर्तने तदभेदाध्यवसाननिबन्ध-. नत्वं विशेषणम् । . -जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ७२५, २. द्रष्टव्य-वही, पृ० ७२५ ३. वही, पृ० ७२६ ४. नापि रूपकेण ( विशेषस्य गतार्थत्वम् ) विषयविषयिणोः सामानाधि करण्यविरहेणारोपासिद्ध: । "तस्मादशक्यवस्वन्तरकरणं विशेषालङ्कारस्यैव प्रभेद इति प्राचामाशयः। -वही, पृ० ७२६ ५. न च स्मृत्या ( विशेषभेदस्य गतार्थत्वम् )। कालानलस्य वीक्षण कर्मत्वश्रवणेन स्मृतित्वासिद्धः। तस्मादशक्यवस्त्वन्तरकरणं विशेषा-- लङ्कारस्यैव प्रभेद इति प्राचामाशयः । -वही, पृ० ७२६

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