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उपसंहार
[ ८१५ है कि किसी अलङ्कार का किसी भाव से नियत सम्बन्ध नहीं । किसी भी भाव के साथ किसी भी अलङ्कार की अनुरूप योजना होने पर उस भाव का सौन्दर्य बढ़ता है । नीरस काव्य में अलङ्कार की योजना से शब्द और अर्थ में वैचित्र्य की सृष्टि होती है ।
कथन प्रभाव को बढाने में ही अलङ्कार की सार्थकता है । कवि के वाञ्छित अर्थ को अधिकाधिक प्रभावोत्पादक बनाकर अभिव्यक्त करने में काव्यालङ्कार सहायक होते हैं
विनोत्कर्षापकर्षाभ्यां स्वदन्तेऽर्था न जातुचित् । कवयोऽलङ्कारान्पर्युपासते
तदर्थमेव
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- महिम भट्ट