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उपसंहार
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अनेक अलङ्कारों के मूल में रहा करता है । उन तत्त्वों के आधार पर तत्तत् वर्गों में अलङ्कार का विभाजन किया गया है । एक वर्ग के अलङ्कारों को पुनः कुछ उपवर्गों में भी बाँटा जा सकता है । उपमा, रूपक, व्यतिरेक आदि सादृश्यमूलक वर्ग के अलङ्कार हैं; पर उपमा में भेद और अभेद की तुल्यप्रधानता, रूपक में अभेद की प्रधानता तथा व्यतिरेक में भेद की प्रधानता रहती है । इस प्रकार सादृश्यमूलक अलङ्कार वर्ग के तीन उपवर्ग बन जाते हैं ।
अलङ्कारों के वर्गीकरण की कठिनाई यह है कि एक वर्ग के अनेक अलङ्कारों में दूसरे वर्ग के अलङ्कारों के तत्त्व भी पाये जा सकते हैं । इसलिए एक अलङ्कार को दो या अधिक वर्गों में भी रखा जा सकता है । वर्गीकरण केवल अध्ययन की व्यावहारिक सुविधा के लिए उपयोगी है ।
* विशिष्ट अलङ्कार के स्वरूप विकास का अध्ययन इस दृष्टि से रोचक विषय है कि एक ही अलङ्कार के सम्बन्ध में अनेक आचार्यों ने अनेक प्रकार की मान्यताएँ व्यक्त की हैं । कुछ आचार्यों ने पूर्ववर्ती आचार्यों के किसी अलङ्कार का स्वरूप सीमित कर उसके अवशिष्ट स्वरूप के आधार पर दूसरे नवीन अलङ्कार की कल्पना कर ली है । कुछ अलङ्कारों की संज्ञा को अन्वर्था प्रमाणित करने के लिए भी अलङ्कार के स्वरूप में परिवर्तन किया गया। है तथा कहीं-कहीं अलङ्कार - विशेष की संज्ञा के रूप में प्रयुक्त पद के अर्थ के सम्बन्ध में अलग-अलग मान्यता के आधार पर भी अलङ्कार के स्वरूप में परिवर्तन किया गया है । अप्रस्तुतप्रशंसा में प्रशंसा का अर्थ वर्णन है; पर कुछ आचार्यों ने उसका अर्थ स्तुति मानकर उसके स्वरूप का निरूपण किया है | इसके लिए अप्रस्तुतस्तुति नाम का भी प्रयोग कुछ आचार्यों ने किया है। समासोक्ति आदि के सम्बन्ध में तो आचार्यों ने परस्पर विपरीत धारणा भी व्यक्त की है । रुद्रट आदि ने उपमान वाक्य से उपमेय वाक्य के गम्य होने में समासोक्ति अलङ्कार माना था पर पीछे चलकर इसके ठीक विपरीत प्रस्तुत - के वर्णन से अप्रस्तुत की व्यञ्जना में समासोक्ति का सद्भाव माना गया है । रुद्रट की समासोक्ति-धारणा तथा परवर्ती आचार्यों की अप्रस्तुतप्रशंसा-धारणा परस्पर अभिन्न हो गयी है । अलङ्कारों के स्वरूप विकास का एक बड़ा कारण अलङ्कार-सामान्य के प्रति आचार्यों का दृष्टि-भेद रहा है । कुछ आचार्यों का आग्रह यह रहा है कि सभी अलङ्कारों में उपमानोपमेय की धारणा रहनी ही चाहिए । अतः, उन्होंने अलङ्कार - विशेष की धारणा में वस्तुओं के बीच उपमानोपमेय - सम्बन्ध की धारणा भी मिला दी ।