Book Title: Alankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Author(s): Shobhakant Mishra
Publisher: Bihar Hindi Granth Academy

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Page 807
________________ ७८४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण स्तुति मात्र का ही बोध हो सकता है । अतः, यह दोनों रूपों तक व्याप्त हो सकने योग्य नाम व्याज उक्ति दूलह, रघुनाथ आदि आचार्यों ने सुझाया; पर यह मान्य नहीं हुआ। कुछ अलङ्कारों का नामकरण सादृश्य के आधार पर भी किया गया है। भाषा में स दृश्य अनेक शब्दों के स्वरूप को प्रभावित करता है। द्वादश के सादृश्य के आधार पर एकादश के स्वरूप का निर्माण इसका एक प्रमाण है। एक और दश के योग से .एकादश की व्युत्पत्ति सामान्य दशा में व्याकरण-सम्मत नहीं होती। एकादश में 'आ' ध्वनि द्वादश के 'आ' के सादृश्य से आ गयी है। द्वादश में द्वा ( संस्कृत द्वि के लिए वेद का द्वा शब्द) और दश का योग होने पर 'आ' स्वभावतः रहता है। इसी आधार पर एक+दश एकादश बन गया होगा। भाषा में सादृश्य के अनेक उदाहरण पाये जाते हैं। अलङ्कार के क्षेत्र में भी सादृश्य का प्रभाव यत्र-तत्र स्पष्ट है। संस्कृत के आलङ्कारिकों ने भ्रान्तिमान् अलङ्कार के नाम में भ्रान्ति के मतुप प्रत्ययान्त रूप का प्रयोग किया था। स्मृति, सन्देह आदि का मतुप, वतुप प्रत्ययान्त प्रयोग आवश्यक नहीं माना गया था। हिन्दी-रीतिशास्त्र के दूलह आदि आचार्यों ने भ्रान्तिमान् के सादृश्य के आधार पर सन्देह के स्थान पर सन्देहवान् तथा स्मृति की जगह स्मृतिमान् संज्ञा का उल्लेख किया है। स्पष्ट है कि लोक-भाषा की तरह अलङ्कार भी सादृश्य आदि से प्रभावित होता रहा है। ___ अलङ्कार-सामान्य और भाषा के इस सम्बन्ध-निरूपण के उपरान्त अलङ्कार के विशिष्ट भेदों का शब्दार्थगत वैलक्षण्य की दृष्टि से अध्ययन अपेक्षित होगा। औपम्यगर्भ सभी अलङ्कारों में उपमानोपमेय-भाव समान रूप से रहा करता है; पर सभी उक्ति-भङ्गियों का अपना-अपना वैशिष्टय होता है । अतिशयमूलक, विरोधमूलक, शृङ्खलामूलक आदि अलङ्कारों के सम्बन्ध में भी यही सत्य है। उनमें अतिशय, विरोध, शृङ्खला आदि का समान तत्त्व रहने पर भी अपना-अपना वैलक्षण्य रहता है और यह उक्तिगत विलक्षणता अनिवार्यतः शब्दार्थगत वैलक्षण्य का बोध कराती है। हम समान तत्त्व पर आधृत तथा आपाततः समान जान पड़ने वाले अलङ्कारों के पारस्परिक भेद पर एक स्वतन्त्र अध्याय में विचार कर चुके हैं। यहाँ इस कथन के प्रमाण में कुछ उदाहरणों का निर्देश ही पर्याप्त होगा। मुख और कमल के सौन्दर्य का साम्य अनेक प्रकार की उक्तियों से दिखाया जा सकता है-उसका मुख कमल के समान सुन्दर है (उपमा), उसका मुख कमल के समान सुन्दर है और कमल

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