Book Title: Alankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Author(s): Shobhakant Mishra
Publisher: Bihar Hindi Granth Academy

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Page 825
________________ ८०२ ] अलङ्कार- धारणा : विकास और विश्लेषण प्रहर्षण एवं विषादन – इन अलङ्कारों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध कविनिबद्ध पात्र के क्रमशः हर्ष एवं विषाद की मनोदशा से है । पाठक उन पात्रों के प्रयत्न में आकस्मिक साहाय्य या बाधा से विस्मित ही होता है | --- अधिक तथा अल्प — दीर्घ आधार की अपेक्षा भी आधेय की अधिकता का वर्णन तथा सूक्ष्म आधार से भी आधेय की अल्पता का वर्णन पाठक को विस्मित कर देता है । तद्गुण - एक वस्तु का अपने गुण को छोड़ कर अन्य वस्तु के गुण का ग्रहण पाठक के विस्मय का हेतु बन सकता है । मीलित - दो वस्तुओं के मिलकर एकाकार हो जाने का वर्णन पाठक के मन को विस्मित करता है । सामान्य - दो वस्तुओं के विशिष्ट धर्म के लक्षित न होने का वर्णन भी विस्मयकारी होता है | अतद्गुण, उन्मीलित, विशेष - स्व-गुण का त्याग कर अन्य के गुणग्रहण का हेतु रहने पर वैसा न होने का वर्णन, एकाकार हो गयी वस्तुओं का परिस्थिति- विशेष में अलग-अलग व्यक्त हो जाने का वर्णन तथा वस्तुओं के विशिष्ट धर्म के लुप्त हो जाने के उपरान्त पुनः लक्षित हो जाने का वर्णन भी विस्मयजनक होता है । विषम, विरोध - विरूप वस्तुओं का एकत्र घटन या विरुद्ध पदार्थों की एकत्र योजना भी पाठक को विस्मित करती है । सम - अनुरूप वस्तुओं का घटन पाठक की वृत्ति को अन्वित करता है । विरोधाभास - आपाततः विरोध से पाठक के मन में कौतूहल जगता है; फिर विरोध का परिहार हो जाने पर पाठक की वृत्ति अन्वित हो जाती है । असङ्गति - असङ्गति में भी कार्य-कारण की भिन्नदेशता कौतूहल जगाती है, पर तात्त्विक अविरोध के बोध से मन अन्वित हो जाता है । कारणमाला - कारणों की शृङ्खला चित्तवृत्ति को अन्वित करती चलती है । यथासंख्य-क्रम से कही हुई वस्तुओं का उसी क्रम से अन्वय मन को अन्वित करता है । एकावली - एकावली में भी क्रम का सौन्दर्य मन को अन्वित करता हुआ चमत्कार उत्पन्न करता है । सार-सार में एक की अपेक्षा दूसरे के उत्कर्ष - प्रदर्शन का क्रम जहाँ मन

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