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अलङ्कार और भाषा
[ ७८३ उसी वस्तु के सम्बन्ध में दूसरे देश के भिन्न वातावरण के अनुसार उससे भिन्न धारणा निहित रहा करती है । शीतल जलवायु वाले प्रदेश में सूर्य का प्रकाश सुखद होता है । अतः, उसमें जो सौन्दर्य - भावना निहित रहती है, उसको लेकर सूर्य के प्रकाश को प्रिया के सुखद स्पर्श या मनोरम हास का उपमान कल्पित किया जा सकता है; पर गर्म देश में सूर्य के प्रखर ताप के सम्बन्ध में भिन्न धारणा रहती है । अतः, वहाँ उसमें कोमल या सुखद वस्तु का उपमानत्व नहीं माना जा सकता । गोण्डा ने उपमानविशेष की धारणा में देशगत भेद का निर्देश करते हुए कहा है कि भारत में पूर्णचन्द्र को नारी के मुख का उपमान माना जाता है; पर योरोप में आधुनिक काल में नारी मुख को चन्द्रमा-सा कहना हास्यास्पद हो जाता है ।'
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शब्दार्थ- धारणा ने अनेक काव्यालङ्कारों की प्रकृति को भी प्रभावित किया है । अलङ्कारों की संज्ञा को कुछ आचार्यों ने अन्वर्था संज्ञा माना है । अधिकांश अलङ्कारों के सम्बन्ध में यह मान्यता उचित ही है । अलङ्कारविशेष की संज्ञा के जहाँ एक से अधिक अथं उपलब्ध थे, वहाँ उनके आधार पर - अलङ्कार की अलग-अलग प्रकृति की कल्पना स्वाभाविक ही थी । अप्रस्तुतप्रशंसा में प्रशंसा का अर्थ वर्णन मानकर 'अप्रस्तुत का वर्णन और उससे 'प्रस्तुतार्थ का भी बोध' उसका लक्षण माना गया है; लेकिन कुछ आचार्यों ने प्रशंसा का अर्थ स्तुति स्वीकार किया और उन्होंने उसका लक्षण यह कर दिया कि अप्रस्तुत की प्रशंसा, जिससे प्रस्तुत की निन्दा गम्य हो अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार है ।' व्याजस्तुति में स्तुति के अर्थ के आधार पर निन्दा के व्याज से स्तुति तथा स्तुति के व्याज से निन्दा को उसका लक्षण माना गया था । कुछ आचार्यों को लगा कि उक्त दोनों रूपों का अर्थबोध कराने की क्षमता व्याजस्तुति शब्द में नहीं है; क्योंकि इस नाम से व्याज से ( निन्दा के व्याज से ) की जाने वाली
१. द्रष्टव्य – J. Gonda, Remarks on Similes In Sanskrit Literature.—पृ० ११९
२. अप्रस्तुतप्रशंसा की दण्डी, भोज आदि के द्वारा प्रदत्त परिभाषा तथा जयदेव, अप्पय्य दीक्षित आदि के द्वारा प्रदत्त परिभाषा तुलनीय | दण्डी अप्रस्तुत की स्तुति तथा उससे प्रस्तुत की गम्य निन्दा को अप्रस्तुतप्रशंसा मानते थे, पर अप्पय्य दीक्षित आदि अप्रस्तुत के वर्णन से प्रस्तुत के गम्य होने में अप्रस्तुतप्रशंसा मानते हैं । - द्रष्टव्य, दण्डी, काव्यादर्श, २, ३४०-४२ तथा —
अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द, ६६