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६८२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण रहता। भ्रान्तिदशा में प्रस्तुत के ज्ञान के अभाव को दृष्टि में रखकर ही जगन्नाथ ने भ्रान्तिमान् में उपमेय के पुरस्कार का अभाव कहा है। मम्मट ने भी दोनों का भेद इस आधार पर किया था कि रूपक में वास्तविक भ्रम नहीं रहता। उसमें एक वस्तु पर अन्य का स्वेच्छा से आरोप किया जाता है; पर भ्रान्तिमान में प्रमाता को केवल अयथार्थ । न ही रहता है ।'
रूपक और अभेद
रूपक तथा अभेद अलङ्कारों का पारस्परिक भेद बताते हुए शोभाकर ने कहा है कि रूपक में आरोप-विषय तथा आरोप्यमाण का अभेद-मात्र प्रतीत होता है; पर अभेद अलङ्कार में विषयी के नियत धर्म की हानि बताकर विषय के साथ उसके सर्वथा अभेद की प्रतीति करायी जाती है। अतः, रूपक में अभेदमात्र की प्रतीति और अभेद में सर्वथा अभेद-प्रतीति; दोनों का व्यावर्तक है ।२ रूपक में प्रस्तुत पर अप्रस्तुत का आरोप-मात्र होता है, जिससे प्रस्तुत और अप्रस्तुत को अभेद प्रतीत होता है; पर अभेद में अप्रस्तुत के उन गुणों की, जो प्रस्तुत से उसका भेद करते हैं, हानि की कल्पना कर प्रस्तुत के साथ अप्रस्तुत के सर्वथा अभेद की प्रतीति करायी जाती है । रूपक और उल्लेख ___ आचार्य दण्डी ने हेतु-रूपक के जिस स्वरूप का निरूपण किया था, उसे परवर्ती आचार्यों ने उल्लेख नाम दिया है। 3 विषय-भेद से हेतु-भेद सेएक वस्तु पर अनेक का आरोप दण्डी के अनुसार हेतुरूपक है। विश्वनाथ, अप्पय्य दीक्षित आदि अर्वाचीन आचार्य विषय-भेद से एक वस्तु के अनेकधा उल्लेख अर्थात् ग्रहण ( एक वस्तु पर अनेक के आरोप ) में उल्लेख अलङ्कार
१. नचैष ( भ्रान्तिमान् ) रूपकं......"तत्र वस्तुतो भ्रमस्याभावात् इह च अर्थानुगमनेन संज्ञायाः प्रवृत्तेः तस्य स्पष्टमेव प्रतिपन्नत्वात् ।
-मम्मट, काव्यप्रकाश, १०,१३२; की वृत्ति पृ० २६१ २. नियतधर्महानावारोप्यमाणस्यातिसाम्यमभेदः ।
-शोभाकर, अलङ्कार-रत्नाकर सूत्र, २७ तथा उसकी वृत्ति, द्रष्टव्य ३. द्रष्टव्य –दण्डीकृत हेतुरूपकलक्षण, काव्यादर्श, २,८५-८६ तथा उस
पर कुसुमप्रतिमा-टीका-विश्वनाथप्रभृतयस्तु एतादृशस्थले उल्लेखालङ्कारमाहुः । - वही, पृ० ११८