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अलङ्कारों का पारस्परिक भेद
[७२५ पिहित और मीलित ___ रुद्रट के पिहित में एक वस्तु के गुण से समान अधिकरण वाली किन्तु उस वस्तु से असमान वस्तु के गुण को आच्छादित कर लिये जाने का वर्णन अपेक्षित माना गया है । इस पिहित का मीलित से थोड़ा-सा भेद यह है कि मीलित में समान चिह्न वाली वस्तु से अन्य वस्तु का आच्छादन वर्णित होता है और पिहित में वस्तु असमान चिह्न वाली वस्तु का अपने गुण से पिधान करती है ।' पिहित और तद्गुण ___ रुद्रट के पिहित का उनके प्रथम तद्गुण (परवर्ती आचार्यों का सामान्य) से भेद यह है कि तद्गुण में समान गुण वाली वस्तु का संसर्ग होने पर नानात्व के लक्षित न होने का वर्णन होता है। पिहित में असमान गुण वाली वस्तु से अन्य का पिधान वर्णित होता है। दूसरे, तद्गुण में एक वस्तु का दूसरी वस्तु से गुण-ग्रहण दिखाया जाता है; पर पिहित में एक वस्तु का दूसरी वस्तु को अपने रूप में मिला लेना। अतः, रुद्रट के दोनों तद्गुण-रूपों से उनके पिहित का भेद स्पष्ट है ।२ पिहित और सूक्ष्म
जयदेव, अप्पय्य दीक्षित आदि ने पिहित का सम्बन्ध गूढ चेष्टा से जोड़कर उसे सर्वथा नवीन रूप दिया है। सूक्ष्म से उनके पिहित का स्वरूप बहुत कुछ मिलता-जुलता है । भेद केवल इतना है कि सूक्ष्म में किसी के आशय को समझ कर किसी व्यक्ति के साभिप्राय चेष्टा करने का वर्णन रहता है तो पिहित में किसी के वृत्तान्त को समझ कर किसी के द्वारा साभिप्राय चेष्टा किये जाने का वर्णन होता है।
१. मीलितातहि कोऽस्य (पिहितस्य) भेदः । उच्यते-असमानचिह्नत्वमेव । तत्र हि समानचिह्नन वस्तुना हर्ष कोपादि तिरस्क्रियत इति ।
-रुद्रट, काव्यालङ्कार, ६,५० पर नमिसाधु की टीका, पृ० ३०७ २. असमानग्रहणेन प्रथमात्तद्गुणालङ्काराद्विशेषः ख्याप्यते, तत्रह्य कगुणा
नामर्थानां संसर्गे नानात्वं न लक्ष्यत इत्युक्तम् । द्वितीयात्तहि कोऽस्य विशेषः । उच्यते-त्रासमानगुणं वस्तु वस्त्वन्तरेण प्रबलगुणेन संसृष्टं
तद्गुणतां प्राप्यते न तद्विधी यत इति ।-वही, पृ० ३०७ ३. सूक्ष्म पराशयाभिशेतरसाकूतचेष्टितम् । तुलनीय–पिहितं परवृत्ता
न्तज्ञातुः साकूतचेष्टितम् ।-अप्पय्य, कुवलयानन्द, १५१-१५२