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ऋषिनाथ
ऋषिनाथ ने 'अलङ्कारमणि मञ्जरी' में शब्दालङ्कारों एवं अर्थालङ्कारों का निरूपण किया है । पूर्व प्रतिपादित अलङ्कारों को ही परिभाषित कर - नवीन उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है ।
अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
जनराज
'कविता - रसविनोद' में जनराज ने काव्य के तत्तदङ्गों का निरूपण करते हुए आठवें विनोद में ( अधम काव्य - वर्णन में ) अर्थालङ्कारों का लक्षण-निरूपण किया है । यह निरूपण 'कुवलयानन्द' के आधार पर किया गया है । बाइसवें - तथा तेइसवें विनोदों में क्रमशः शब्दालङ्कार एवं चित्र का विवेचन किया गया है। विवेचन विस्तृत होने पर भी परम्परागत ही है ।
राम सिंह
'अलङ्कार-दर्पण' में रामसिंह ने कुवलयानन्दकार के द्वारा स्वीकृत अलङ्कारों का निरूपण किया है । शैली में यह भेद है कि इसमें एक पद में लक्षणउदाहरण नहीं देकर सोरठा, चौपाई तथा गाथा में अलङ्कारों के लक्षण और दोहों में उनके उदाहरण दिये गये हैं ।
सेवादास
सेवादास का उद्देश्य नवीन अलङ्कार लक्षण की स्थापना नहीं था । वे - अलङ्कार - निरूपण के माध्यम से अपने उपास्य – राम और सीता — के गुण का 'प्रकाश करना चाहते थे । अतः उन्होंने अपने 'रघुनाथालङ्कार' में 'रामचन्द्र'भूषण' तथा 'रामचन्द्राभरण' की तरह प्रत्येक अलङ्कार का लक्षण देकर राम
गुणगान पर रचित पदों का उदाहरण दिया है । उन्होंने स्वयं यह स्वीकार • किया है कि उनका अलङ्कार - निरूपण 'चन्द्रालोक' और 'कुवलयानन्द' के आधार पर है । '
१. कुवलयानन्द चंद्रालोक में अलंकार के नाम । तिनकी गति अवलोकि के अलंकार कहि राम ॥
- सेवादास, रघुनाथालंकार, पृ० २४