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अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [४८३ वस्तु-सम्बन्ध अन्वय के अभाव में अनुपपन्न होता है और अन्वय रहने पर उपपन्न । उद्भट दोनों ही स्थितियों में सम्बन्ध के उपमा में पर्यवसान होने पर निदर्शना अलङ्कार का सद्भाव मानते हैं ।
वामन ने भामह की निदर्शना-धारणा को स्वीकार कर सूत्रबद्ध किया है। उनका कथन है कि 'जहां शुद्ध क्रिया से ही एक वस्तु विशिष्ट अर्थ से (अर्थान्तर से) अपना सम्बन्ध निदर्शित करती हो, वहाँ निदर्शना होती है।' इस प्रकार भामह तथा उद्भट की निदर्शना-धारणा अलग-अलग विकसित हो रही थी। भामह के अनुयायी क्रिया से एक अर्थ का विशिष्ट अर्थ से सम्बन्ध-ख्यापन निदर्शना का लक्षण मान रहे थे । दूसरी ओर उद्भट के अनुयायी दो वस्तुओं के सम्भव अथवा असम्भव सम्बन्ध का उपमानोपमेय भाव में पर्यवसित होना उसका लक्षण मानते थे। आचार्य मम्मट ने उक्त दोनों मतों को समन्वित रूप में स्वीकार किया। उन्होंने उद्भट के निदर्शना-लक्षण को अंशतः ही ग्राह्य समझा। वस्तु-सम्बन्ध के असम्भव होने-मात्र के स्थल में दोनों के बीच उपमानोपमेय का प्रकल्पन उनके अनुसार निदर्शना का लक्षण है ।२ स्पष्टतः, उन्होंने उद्भट की निदर्शना का एक ही भेद-अभवद्वस्तुसम्बन्धा भेदस्वीकार किया है। उन्होने वामन की निदर्शना-परिभाषा को, जो भामह की मान्यता पर आधृत है, स्वीकार कर उसे निदर्शना का एक स्वीकार्य प्रकार माना है।3 परवर्ती आचार्यों में शोभाकर ने मम्मट के मत का अनुसरण करते हुए केवल असम्भववस्तुसम्बन्धा निदर्शना का ही अस्तित्व स्वीकार किया है।
आचार्य रुय्यक ने उद्भट की निदर्शना-धारणा का प्रभूत प्रभाव ग्रहण किया है। उन्होंने उद्भट की 'निदर्शना-परिभाषा' में प्रयुक्त 'उपमानोपमेयत्व' के स्थान पर प्रतिबिम्बकरण' शब्द का प्रयोग किया है। इस प्रकार रुय्यक
१. क्रिययव स्वतदर्थान्वयख्यापन निदर्शनम् ।
-वामन, काव्यालं० सू० ४,३,२० निदर्शना......... २. अभवन्वस्तुसम्बन्ध उपमापरिकल्पकः।-मम्मट, काव्यप्र० १०, १४६ ३. स्वस्वहेत्वन्वयस्योक्तिः क्रिययैव च साऽपरा। वही, १०, १५० ४. असति सम्बन्धे निदर्शना ।-शोभाकर, अलङ्कार रत्नाकर, सूत्र १८ ५. सम्भवतासम्भ वता वा वस्तुसम्बन्धेन गम्यमानं प्रतिबिम्बकरणं निदर्शना।
-रुय्यक, अलङ्कार-सूत्र सं० २७