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हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [ ३५५ मतिराम-अपह्न ति का छलापह्न ति भेद (कैतवापह्नति का पर्याय), उत्प्रेक्षा का गुप्तोत्प्रेक्षा भेद (गम्योत्प्रेक्षा का अपर नाम)।
भूषण-(१) सामान्य-विशेष, (२) पूर्वावस्था, (३) विपरीत ( नाम प्राचीन पर स्वरूप नवीन )।
देव-(१) गुणवत्, (२) सङ्कीर्ण, (३) प्रत्युक्ति ।
अलङ्कार के भेद-यमक-भेद-सिंहावलोकन, उपमा-भेद-स्वभाव, योग, सङ्कीर्णभाव, उचित, प्रतिकार, उल्लेख, आक्षेप, गर्व आदि ।
रघुनाथ—प्रेमात्युक्ति नामक अत्युक्ति भेद ।
भिखारी दास-(१) वीप्सा (शब्दालङ्कार) और (२) स्वगुण । दीपकभेद-देहरी दीपक, अतिशयोक्ति का उपमातिशयोक्ति, उत्प्रेक्षातिशयोक्ति आदि ।
रसरूप-(१) धन्यता तथा (२) निर्णय ।
बैरोसाल-प्रमाणालङ्कार-भेद-पुराण, आगम, आचार तथा आत्मतुष्टि प्रमाण।
इस प्रकार हिन्दी-रीति-शास्त्र में निम्नलिखित नवीन अलङ्कारों की कल्पना की गयी है, जिनके स्वरूप मौलिकता की दृष्टि से परीक्ष्य हैं-गणना, प्रेम, अमित, युक्त, सुसिद्ध, प्रसिद्ध, विपरीत (दो रूप केशव तथा भूषण के द्वारा कल्पित, विपरीत नाम्ना एक होने पर भी स्वरूपतया अलग-अलग हैं। अतः, हिन्दी में विपरीत नाम से वस्तुतः दो अलङ्कारों की कल्पना की गयी है। , सामान्यविशेष, पूर्वावस्था, गुणवत्, सङ्कीर्ण ( संस्कृत-आचार्यों के संसृष्टि-सङ्कर-रूप सङ्कीर्ण से भिन्न ), प्रत्युक्ति, वीप्सा, स्वगुण, धन्यता तथा निर्णय ।
लेख लेश का तथा चित्र चित्रोत्तर का अपर पर्याय-मात्र है। पुराण, आगम आदि प्रमाण शब्द-प्रमाण से भिन्न नहीं। आचार तथा आत्मतुष्टि प्रमाण की धारणा नवीन नहीं।
अलङ्कारों के तत्तत् नवीन भेदों की कल्पना विभिन्न अलङ्कारों की धारणा को मिला कर की गयी है। उदाहरणार्थ-उल्लेखोपमा, आक्षेपोपमा, उपमातिशयोक्ति, उत्प्रेक्षातिशयोक्ति आदि तत्तदलङ्कार-भेद द्रष्टव्य हैं। यमक का सिंहावलोकन भेद नाम्ना नवीन अवश्य है; पर उसका स्वरूप मम्मट बादि के पाद यमक (आद्यन्त भेद) से अभिन्न है। प्रेमात्युक्ति में भी प्रेमभाव की