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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
अत्युक्ति की कल्पना है । विभिन्न भावों के साथ अलङ्कार के योग का तथा विभिन्न अलङ्कारों के योग का नवीन-नवीन नामकरण होने से अलङ्कार के असंख्य भेद हो जायँगे । ऐसे भेदों की कल्पना में चिन्तन की मौलिकता की नहीं, अनावश्यक भेदीकरण से नवीनता - प्रदर्शन की प्रवृत्ति का परिचय मिलता है ।
उपरिलिखित नवीन अलङ्कारों में से
(अ) कुछ तो चमत्कार का अभाव होने से अलङ्कार ही नहीं हैं—गणना, सुसिद्ध, प्रसिद्ध, ( केशव का) विपरीत ।
(आ) कुछ का सम्बन्ध रस-भाव या चरित्र से है । अतः, उन्हें अलङ्कार की सीमा में परिमित कर देना उचित नहीं - प्र ेम आदि ।
(इ) कुछ अलङ्कारों का प्राचीन अलङ्कारों में अन्तर्भाव सम्भव है— पूर्वावस्था तथा स्वगुण का पूर्वरूप में, गुणवत् का तद्गुण में, प्रत्युक्ति का प्रश्नोत्तर में, सङ्कीर्ण का शोभाकर के तन्त्र में अन्तर्भाव सम्भव है ।
(ई) कुछ प्राचीन धारणा को अलङ्कार मान लिया गया है । अतः, अलङ्कार रूप में उसकी स्वीकृति मात्र नवीन है— बीप्सा की धारणा व्याकरण में प्राचीन काल से प्रचलित थी । वीप्सा में शब्द का दो बार प्रयोग व्याकरण - सम्मत है । इसे स्वतन्त्र अलङ्कार माना गया है। अनुप्रास आदि यह है |
( उ ) कुछ के स्वरूप की कल्पना पूर्वाचार्यों के एकाधिक अलङ्कारों की धारणा के योग से की गयी है -युक्त में स्वभावोक्ति और सम के स्वभाव का मिश्रण है । भूषण का विपरीत आधाराधेय भाव के साथ प्रतीप धारणा के योग से कल्पित है ।
(ऊ) प्राचीन अलङ्कार के ही किसी भेद को अन्य नाम से या उसी नाम से स्वतन्त्र अलङ्कार मान लिया गया है— सामान्यविशेष अप्रस्तुतप्रशंसा का एक भेद है, जो नाम भेद से स्वतन्त्र अलङ्कार मान लिया गया है । चित्र चित्रोत्तर का एक भेद है जो उसी नाम से स्वतन्त्र अलङ्कार बन गया है ।
(३) हिन्दी - रीति - शास्त्र के आचार्यों ने कुछ प्राचीन अलङ्कारों के नवीन अभिधान का भी प्रयोग किया है । ऐसा कहीं-कहीं तो सकारण हुआ है; पर कहीं-कहीं अकारण । उदाहरणार्थ - कारणमाला की जगह उसी के प्राचीन लक्षण से गुम्फ शब्द लेकर 'गुम्फ' नाम का प्रयोग तथा कारण का पर्यायवाची शब्द लेकर हेतुमाला संज्ञा का प्रयोग; इसी प्रकार सार की परिभाषा से