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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
पुनरुक्तवदाभास ___ आचार्य उद्भट ने सर्वप्रथम पुनरुक्तवदाभास अलङ्कार का निरूपण किया। उन्होंने यद्यपि शब्दालङ्कार और अर्थालङ्कार का सैद्धान्तिक रूप से विभाजन वहीं किया है, तथापि उनके अलङ्कार-विवेचन के क्रम को देखते हुए यह स्पष्ट है कि उन्होंने प्रस्तुत अलङ्कार को शब्दालङ्कार माना है। पुनरुक्तवदाभास के लक्षण में उद्भट ने कहा है कि इस में पुनरुक्ति का आभास होता है, अर्थात् भिन्न-भिन्न पद एक ही वस्तु का बोध कराते-से जान पड़ते हैं। एक ही वर्थ का भिन्न-भिन्न पदों से पुनः-पुनः कथन पुनरुक्ति-दोष माना जाता है; पर जहाँ तत्त्वतः अर्थ की पुनरुक्ति नहीं रहने पर भी आपाततः पुनरुक्ति का बाभास होता है और विचार करने पर परिणामतः पुनरुक्ति का परिहार हो जाता है, वहां चमत्कार के कारण पुनरुक्तवदाभास या पुनरुक्ताभास अलङ्कार माना जाता है।
संस्कृत तथा हिन्दी अलङ्कार-शास्त्र के प्रायः सभी प्रमुख आचार्यों ने पुनरुक्तवदाभास का यही स्वरूप माना है। इस अलङ्कार के विषय में आचार्यों में थोड़ा मतभेद इसके शब्दगतत्व तथा अर्थगतत्व आदि को लेकर ही रहा है। एक ओर रुय्यक तथा उनके अनुयायी विद्याधर, विद्यानाथ आदि ने इसे अर्थालङ्कार माना तो दूसरी ओर आचार्य मम्मट तथा उनके अनुयायियों ने इसे शब्दार्थोभयगत अलङ्कार माना है। विश्वनाथ भी इसे उभयालङ्कार मानने के पक्ष में ही हैं। विश्वनाथ के शब्दालङ्कार-प्रकरण में पुनरुक्तवदाभास का निरूपण होने से यह भ्रान्ति नहीं होनी चाहिए कि वे इसे शब्दालङ्कार मानने के पक्ष में थे। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि इसे उभयालङ्कार मानने पर भी उन्होंने केवल परम्परा के निर्वाह के लिए इसका निरूपण शब्दालङ्कारप्रकरण में किया है। हिन्दी अलङ्कार-शास्त्र के एक शोधक ने तो यहाँ तक मान लिया है कि विश्वनाथ ने पुनरुक्तवदाभास को अर्थालङ्कार माना है। 3.
१. पुनरुक्तवदाभासमभिन्नवस्तिवोद्भासिभिन्नरूपपदम् ।-उद्भट, काव्यालं.
सारसं० पृ० १ २. शब्दार्थयोः प्रथमं शब्दस्य बुद्धिविषयत्वात् शब्दालङ्कारेषु वक्तव्येषु
शब्दार्थालङ्कारस्यापि पुनरुक्तवदाभासस्य चिरन्तनैः शब्दालङ्कारमध्ये लक्षितत्वात् प्रथमं तमेवाह। -विश्वनाथ, साहित्यद० वृत्ति पृ० ५५८ ३. द्रष्टव्य, डा० ओमप्रकाश, रीतिकालीन अलं० सा० का शास्त्रीय
विवेचन, पृ० २३६