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७८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण परवशाक्षेप, उपायाक्षेप, रोषाक्षेप, मूछ क्षेप, अनुक्रोशाक्षेप, श्लिष्टाक्षेप, अनुशयाक्षेप, संशयाक्षेप, अर्थान्तराक्षेप तथा हेत्वाक्षेप ।' भामह ने विषय के वक्ष्यमाण तथा उक्त होने के आधार पर आक्षेप के दो भेदों का ही उल्लेख किया है। दण्डी की सूक्ष्म-भेदोपभेदकारिणी रुचि ने आक्षेप के उक्त भेद कर दिये। वस्तुतः उक्त सभी प्रकारों तथा अन्य सम्भावित प्रकारों की कल्पना के लिए पर्याप्त अवकाश भामह के व्यापक आक्षेप-लक्षण में ही था । दण्डी के श्लिष्ट, संशय तथा अर्थान्तर आक्षेप-भेद क्रमशः भामह के श्लिष्ट, ससन्देह तथा अर्थान्तरन्यास अलङ्कारों से अनुप्राणित हैं। कालकृत विभाजन का आधार भामह का वक्ष्यमाण विषय तथा उक्त विषय आक्षेप-भेद है। दण्डी के अन्य आक्षेप-भेद प्रतिषेध-कर्ता की विभिन्न दशाओं पर आधृत हैं। रोष, परुष, अनुक्रोश आदि का मानसिक दशा से तथा यत्न, मूर्छा, उपाय आदि का शारीरिक एवं मानसिक दोनों दशाओं से सम्बन्ध है। धर्म, धर्मी, कार्य, कारण आदि आक्षेप-भेदों का आधार उन-उन पदार्थों का प्रतिषेध है। स्पष्ट है कि आक्षेप्य विषय की विविधता, वक्ता की मनोदशा, काल-विभाग तथा उक्ति में अन्य अलङ्कार-तत्त्वों के योग के आधार पर दण्डी ने भामह की मूल आक्षेप-धारणा के उक्त भेदों की कल्पना कर ली है। अर्थान्तरन्यास
भामह की ही तरह दण्डी भी प्रस्तुत वाक्यार्थ का अप्रस्तुत वाक्यार्थ से समर्थन अर्थान्तरन्यास का लक्षण मानते हैं। भामह ने प्रस्तुत अलङ्कार की केवल सामान्य परिभाषा दी है; किन्तु दण्डी ने उसके आठ विशेष भेदों का भी सोदाहरण उल्लेख किया है। वे भेद निम्नलिखित हैं-(१) विश्वव्यापी,(२) विशेषस्थ, (३) श्लेषाविद्ध, (४) विरोधवान्, (५) अयुक्तकारी, (६) युक्तात्मा, (७) युक्तायुक्त तथा (८) विपर्यय ।३ इनके उदाहरणों में विशेष कथन का सामान्य से समर्थन दिखाया गया है। सामान्य का विशेष से भी समर्थन अर्थान्तरन्यास में हो सकता है और उसके भी अनेक भेद हो सकते हैं। दण्डी ने इस सम्भावना
१. द्रष्टव्य-दण्डी, काव्याद० २, १२०-६८ . २. तुलनीय-भामह, काव्यालं० २, ७१ तथा दण्डी, काव्याद० २,१६६ ३. विश्वव्यापी विशेषस्थः श्लेषाबिद्धः विरोधवान् । अयुक्तकारी युक्तात्मा युक्तायुक्तो विपर्ययः ॥
-दण्डी, काव्याद० २, १७०