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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
आचार्य उद्भट
अलङ्कार - शास्त्र के इतिहास में आचार्य उद्भट का महत्त्वपूर्ण स्थान है । उनका 'भामह विवरण' उपलब्ध नहीं, किन्तु अन्य ग्रन्थों में पाये जाने वाले निर्देश के आधार पर यह माना जा सकता है कि वह भामह के अलङ्कारसिद्धान्त का विवरण मात्र नहीं था, उसमें भामह की मान्यताओं का तटस्थविवेचन तथा नवीन सिद्धान्तों का युक्तिपूर्ण स्थापन भी हुआ था। भारतीयअलङ्कार-शास्त्र में उद्भट के मतानुयायियों की सुदीर्घ परम्परा रही है । आनन्दवर्द्धन, मम्मट आदि के ग्रन्थों में उद्भट के समर्थकों के विचारों का 'इत्यौद्भटायनः' आदि वाक्य खण्ड के द्वारा उल्लेख उद्भट की महत्ता का प्रमापक है। उद्भट ने अपने पूर्ववर्ती आचार्यों के कुछ अलङ्कारों के स्वरूप को अधिक परिष्कृत रूप में प्रस्तुत किया है । उन्होंने भामह तथा दण्डी के कुछ अलङ्कारों की सत्ता अस्वीकार कर दी कुछ अलङ्कारों के नवीन भेदोपभेदों की कल्पना की तथा कुछ अलङ्कारों को नाम्ना स्वीकार कर उनके नूतन लक्षण की उद्भावना की। इतना ही नहीं, उन्होंने भामह तथा दण्डी के द्वारा अनिर्दिष्टपूर्वं स्वतन्त्र अलङ्कारों का भी उल्लेख किया है । उनके पूर्ववर्ती विचारकों में से भामह के अलङ्कार - सिद्धान्त ने उन्हें सर्वाधिक प्रभावित किया है । उन्होंने भामह की कुछ अलङ्कार - परिभाषाओं को यथारूप स्वीकार कर लिया है । उनके 'काव्यालङ्कारसा रसङग्रह' में विवेचित अलङ्कारों का क्रम भी भामह के 'काव्यालङ्कार' के अलङ्कार-क्रम से बहुलांशतः मिलता-जुलता है । प्रस्तुत सन्दर्भ में उद्भट के द्वारा कल्पित नवीन अलङ्कारों, प्राचीन अलङ्कारों के नवीन भेदोपभेदों तथा प्राचीन अलङ्कारों की नूतन परिभाषाओं के स्रोत - का अन्वेषण अभीष्ट है ।
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उद्भट ने अपने 'काव्यालङ्कारसारसङग्रह' में निम्नलिखित इकतालीस अलङ्कारों का सविस्तर विवेचन किया है: - ( १ ) पुनरुक्तवदाभास, (२) छेका- नुप्रास, (३) अनुप्रास, (४) लाटानुप्रास, (५) रूपक, (६) दीपक, (७) उपमा, (5) प्रतिवस्तूपमा, ( 8 ) आक्षेप, (१०) अर्थान्तरन्यास, (११) व्यतिरेक, (१२) विभावना, (१३) समासोक्ति, (१४) अतिशयोक्ति, (१५) यथासंख्य, (१६) उत्प्र ेक्षा, (१७) स्वभावोक्ति, (१८) प्रय, (१६) रसवत्, ( २० ) ऊर्जस्वी,
१. द्रष्टव्य, काव्यालङ्कारसारसंग्रह, के० एस० रामस्वामी कृत प्रस्तावना पृ० २१