________________
३४४ ]
अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
।
कि उनके अलङ्कार-विवेचन का आधार 'चन्द्रालोक' आदि ग्रन्थ हैं । ' ' साहित्य सुधानिधि, में निरूपित संग्रामोद्दाम हुङ, कृति, अलङ्कार को कुछ आलोचकों ने जगत सिंह की नवीन उद्भावना मान लिया है । २ वस्तुतः यह जगतसिंह की नवीन उद्भावना नहीं । जयदेव ने 'चन्द्रालोक' में संग्रामोद्दामहुङ कृति का उल्लेख किया था । दृष्टान्त के लक्षण में बिम्बप्रतिबिम्ब भाव का उल्लेख कर उन्होंने कहा था कि मल्ल - प्रतिमल्ल भाव के होने पर संग्राम क्षेत्र में होने वाली उद्दाम हुङ कृति के समान हुङ कृति होती है । 3 जयदेव के इस कथन की दो व्याख्याएँ सम्भव हैं एक यह कि उन्होने दृष्टान्त के स्वरूप को ही स्पष्ट करने के लिए मल्ल - प्रतिमल्ल भाव में संग्राम की उद्दाम हुङ कृति का उल्लेख किया होगा । दूसरी यह कि वस्तुओं के बिम्बप्रतिबिम्ब-भाव में दृष्टान्त अलङ्कार मान कर उन्होंने मल्ल-प्रतिमल्ल भाव में संग्रामोद्दाम हुङ कृति नामक स्वतन्त्र अलङ्कार की सत्ता मानी होगी । वस्तुओं में मल्ल - प्रतिमल्ल भाव का अर्थ स्पष्ट नहीं । अतः, 'चन्द्रालोक' की संग्रामोद्दाम हुङ कृति का दृष्टान्त से स्वतन्त्र अस्तित्व सन्दिग्ध है । जगत सिंह ने चन्द्रालोककार की उसी धारणा को संग्रामोद्दामहुङ, कृति अलङ्कार में प्रस्तुत किया है । 'साहित्य सुधानिधि' में प्रस्तुत अलङ्कार का जो लक्षण दिया गया है, वह 'चन्द्रालोक' के श्लोक की एक पंक्ति का अविकल अनुवाद है । " अतः संग्रामोद्दाम हुङ, कृतिको जगतसिंह की नवीन उद्भावना मानना भ्रम है ।
१. चन्द्रालोक आदि हैं भाषा कीन ।
— जगत सिंह, साहित्य सुधानिधि, तरंग, ६, २. द्रष्टव्य – ओम् प्रकाश शर्मा, रीतिकालीन अलङ्कार - साहित्य, पृ० १३२ ३. चेद्विम्बप्रतिबिम्बत्वं दृष्टान्तस्तदलङ्कतिः । स्यान्मल्लप्रतिमल्लत्वे संग्रामोद्दामहु कृति ॥ — जयदेव, चन्द्रालोक, ५, ५६. ४. मल्लप्रतिमल्लत्वे संग्रामसम्बन्धिनी तदाधारा चोद्दामा निष्प्रतिबन्धा उत्कृष्टा हुङ, कृतिः स्यादित्युत्तरार्धार्थः । मल्लप्रतिमल्लत्वे यथा संग्रामोद्दामहुङ्कृतिः स्यात्तथा यदि बिम्बवत्वे तदा दृष्टान्तः स्यादित्यन्वयात् पूर्वोत्तरवाक्यार्थयोबिम्बप्रतिबिम्बभावाल्लक्ष्यमपीदमेव पद्यम् ।........... यद्वा दृष्टान्तसहितस्य बिम्बप्रतिबिम्बत्वस्य हुङ, कृतिसहितस्य मल्लप्रति - मल्लत्वस्य च सः । —चन्द्रालोक, रमा टीका, पृ० ५५-५६. ५. तुलनीय - मल्ल प्रतिमल्लत्व कहि कह अस होइ ।
हुकृति जानो सोइ ॥ - जगत सिंह, साहित्य सुधानिधि तथा - स्यान्मल्लप्रतिमल्लत्वे संग्रामोद्दाम हुङ, कृतिः ।
- जयदेव, चन्द्रालोक, ५, ५