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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
(छ) शब्द - भेद से पूर्ववर्ती आचार्यों की अलङ्कार - परिभाषा के आधार पर परिभाषित अलङ्कार - इस अलङ्कार - वर्ग में समासोक्ति, उपमेयोपमा, संसृष्टि तथा प्रतिवस्तूपमा अलङ्कारों की गणना की जा सकती है ।
(ज) पूर्ववर्ती आचार्यों के अलङ्कारों से अभिन्न अलङ्कार - उद्भट के अनेक अलङ्कार भामह के अलङ्कार से अभिन्न हैं । उन्होंने भामह की कुछ अलङ्कार- परिभाषाओं को ही अपनी पुस्तक में उद्धृत कर दिया है । इस वर्ग में उद्भट के निम्नलिखित अलङ्कार आते हैं- आक्षेप, विभावना, अतिशयोक्ति, यथासंख्य, अपह्न ुति, विरोध, अप्रस्तुतप्रशंसा, सहोक्ति, अनन्वय, तथा भाविक । भाविक अलङ्कार के सम्बन्ध में उद्भट की मान्यता में थोड़ी नवीनता यह है कि जहाँ भामह ने उसे प्रबन्धगत अलङ्कार ( गुण ) माना था वहाँ उद्भट ने उसे वाक्य का अलङ्कार स्वीकार किया । भाविक अलङ्कार का लक्षण भामह लक्षण से अभिन्न है । '
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पुनरुक्तत्रदाभास
प्रस्तुत अलङ्कार में अनेक पद समान अर्थ के बोधक-से जान पड़ते हैं । उनके अर्थ वस्तुतः भिन्न-भिन्न हुआ करते हैं; किन्तु आपाततः वे समानार्थक प्रतीत होते हैं । पदों की समानार्थकता के प्रतिभास के अनन्तर उनकी भिन्नार्थकता के तत्त्व-बोध में उक्ति का चमत्कार निहित रहता है । इस अलङ्कार की कल्पना उद्भट के पूर्व नहीं हुई थी । इसकी उद्भावना का श्रेय उद्भट को है ।
दृष्टान्त
अलङ्कार के क्षेत्र में दृष्टान्त की अवतारणा सर्वप्रथम उद्भट के 'काव्यालङ्कारसारसंग्रह' में ही हुई है; किन्तु इसका अस्तित्व अज्ञात - पूर्व नहीं है । भरत ने दृष्टान्त नामक लक्षण का स्वरूप विवेचन किया है । प्रस्तुत अलङ्कारं का स्वरूप भरत के दृष्टांन्त लक्षण के स्वरूप से मिलता-जुलता है । आचार्य भरत ने उक्त लक्षण में वर्ण्य अर्थ के निदर्शन के रूप में कल्पित अन्य
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१. तुलनीय - उद्भट, काव्यालङ्कारसारसंग्रह, ६, १२ तथा
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भामह, काव्यालङ्कार, ३, ५३-५४
२. पुनरुक्तवदाभासमभिन्नवस्त्विवोद्भासिभिन्नरूपपदम् ।
—उद्भट, काव्यालङ्कारसारसंग्रह, १, ३