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हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [ ३२३ किया। रसवदादि को दण्डी आदि प्राचीन आचार्यों ने भी अलङ्कार माना था; पर हम देख चुके हैं कि संस्कृत-अलङ्कार-शास्त्र में भी उनके अलङ्कारत्व के सम्बन्ध में आचार्यों में मतैक्य नहीं रहा है।
मतिराम ने 'ललितललाम' में स्वीकृत सभी अलङ्कारों को अप्पय्य दीक्षित के 'कुवलयानन्द' की अलङ्कार-परिभाषाओं के आधार पर ही परिभाषित किया है। 'कुवलयानन्द' में जिन-जिन अलङ्कारों के जो-जो भेद कल्पित हैं, उन-उन अलङ्कारों के प्रायः वे सभी भेद 'ललितललाम' में निरूपित हैं। मतिराम ने अप्पय्य के कुछ अलङ्कारों की संज्ञाओं की जगह उनके पर्यायवाची अभिधान का प्रयोग किया है; पर उनके स्वरूप अप्पय्य के तत्तदलङ्कारों के स्वरूप से अभिन्न हैं। उदाहरणार्थ, मतिराम का परस्पर पूर्वाचार्य के अन्योन्य से तथा हेतुमाला कारणमाला से अभिन्न है। ये नाम प्राचीन अलङ्कारों के नाम के पर्याय-मात्र हैं।
अप्पय्य के 'उत्तर' के दो रूपों के आधार पर गूढोत्तर और चित्र-इन दो अलङ्कारों की स्वतन्त्र सत्ता तो मतिराम के पूर्व ही स्वीकृत हो चुकी थी, मतिराम ने चित्र के भी दो भेदों की परिभाषाएं दी हैं। उनके अनुसार चित्र का एक रूप वह है, जिसमें प्रश्न एवं उत्तर साथ रहें तथा दूसरा रूप वह है, जिसमें अनेक प्रश्नों का उत्तर एक हो।' चित्र के इन दो रूपों की कल्पना भी 'कुवलयानन्द' से ही ली गयी है । यद्यपि अप्पय्य दीक्षित ने उत्तर के दूसरे रूप, अर्थात् चित्रोत्तर के लक्षण में उसके दो स्वरूपों को स्पष्ट रूप से पृथक्-पृथक् परिभाषित नहीं किया है; पर उन्होंने उसके उदाहरण में परिभाषा को घटित करते हुए लिखा है कि यहाँ एक अंश में प्रश्न और उत्तर साथ हैं तथा दूसरे अंश में अनेक प्रश्नों का उत्तर एक है । अतः इन दोनों ही स्थितियों में चित्रउत्तर है ।२ स्पष्ट है कि उत्तर के भेद चित्रोत्तर के दो उदाहरणों को ध्यान में रख कर ही मतिराम ने चित्र के दो रूपों को परिभाषित किया है। १. जहँ बूझत कछु बात कौं उत्तर सोई बात । चित्र कहत मतिराम x x x ॥ बहुती बातनि को जहाँ उत्तर दीजे एक। चित्र बखानत हैं तहाँ कविजन बुद्धि-विवेक ।
-मतिराम, ललितललाम, ३५०, ३५२ २. अत्र 'केदारपोषणरता' इति प्रश्नाभिन्नमुत्तरं 'के खेटाः, किं चलम् ?' इति प्रश्नद्वयस्य 'वयः' इत्येकमुत्तरम् ।
"-अप्पय्य, कुवलयानन्द, वृत्ति पृ० १६७