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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
दिया है । स्पष्ट है कि दण्डी की निदर्शन-धारणा तत्त्वतः भामह की तद्विषयक धारणा से अभिन्न है ।
सहोक्ति
दण्डी ने भामह की सहोक्ति-परिभाषा को ही शब्द भेद से स्वीकार किया है । गुण, क्रिया, द्रव्य आदि का सहभाव से कथन होने के कारण, गुणसहोक्ति, क्रिया सहोक्ति, द्रव्यसहोक्ति आदि सहोक्ति अलङ्कार के भेद माने जा सकते हैं ।
परिवृत्ति
इस
भामह के परिवृत्ति-लक्षण से दण्डी का परिवृत्तिलक्षण किञ्चित् भिन्न है । उसका स्वरूप अपेक्षाकृत अधिक व्यापक है । भामह ने न्यून वस्तु के बदले विशिष्ट वस्तु का आदान परिवृत्ति का लक्षण माना था; किन्तु दण्डी ने वस्तु के किसी प्रकार के विनिमय में परिवृत्ति का सद्भाव स्वीकार किया है । " विनिमय के तीन प्रकार सम्भव हैं - ( क ) न्यून से अधिक का विनिमय, (ख): अधिक से न्यून का विनिमय तथा ( ग ) समान का समान से विनिमय । प्रकार दण्डी के मतानुसार परिवृत्ति के उक्त तीन भेद माने जा सकते हैं । इनमें से केवल प्रथम भेद को भामह के मतानुयायी परिवृत्ति मानेंगे । दण्डी ने न्यून से अधिक के विनिमय का ही उदाहरण दिया है । शेष दो भेदों के उदाहरण उन्होंने विस्तार के भय से नहीं दिये है । एक ही भेद का सोदाहरण - विवेचन भामह के प्रभाव की सूचना देता है । अन्य -भेदों में भी विनिमय का भाव भामह से ही लिया गया है ।
आशीः
आशीः दण्डी का नवीन अलङ्कार है । भामह के 'काव्यालङ्कार' में इसका उल्लेख मात्र हुआ है ; उसका लक्षण नहीं दिया गया है । भामह ने स्वयं उसका अलङ्कारत्व स्वीकार नहीं किया है । दण्डी के अनुसार प्रिय की. वस्तु प्राप्ति की इच्छा अथवा प्रिय वस्तु की शुभाशंसा आशीः अलङ्कार है । प्रस्तुत अलङ्कार को कुछ लोगों ने प्र ेय अलङ्कार का ही विशिष्ट रूप माना है ।
१. तुलनीय - दण्डी, काव्याद० २,३५१ तथा भामह, काव्यालं० ३,४१ २. दण्डी, काव्याद० २,३५७