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के आधार से कषायपाहुड की रचना की आम्नाय में आगम का स्थान प्राप्त है । लुप्त हो गए हैं ।
दिगम्बरों के मत से वीर - निर्वाण के बाद जिस क्रम से श्रुत का
लोप हुआ, वह नीचे दिया जाता है४ " - ३. केवली - गौतमादि पूर्वोक्त
आगम - साहित्य की रूप-रेखा २३ । इन दोनों ग्रंथों को दिगम्बर उसके मतानुसार अंग-आगम
५. श्रुतकेवली - विष्णु आदि पूर्वोक्त११. वशपूर्वी - विशाखाचार्य आदि पूर्वोक्त
५. एकादशांगधारी - नक्षत्र
४. श्राचारांगधारी - सुभद्र
यशोभद्र
जसपाल (जयपाल )
पाण्डु
ध्रुवसेन कंसाचार्य
यशोबाहु लोहाचार्य
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६२ वर्ष १०० वर्ष
१८३ वर्ष
२२० वर्ष
११८ वर्ष
६८३ वर्ष
दिगम्बरों के अंगबाह्य ग्रंथ :
उक्त अंग के अतिरिक्त १४ अंगबाह्य आगमों की रचना भी स्थविरों ने की थी, ऐसा मानते हुए भी दिगम्बरों का कहना है, कि उन अंगबाह्य आगम का भी लोप हो गया है । उन चौदह अंगबाह्य आगमों के नाम इस प्रकार हैं
१ सामायिक २ चतुर्विंशतिस्तव ३ वंदना ४ प्रतिक्रमण ५ वैनयिक ६ कृति-कर्म ७ दशवैकालिक ८ उत्तराध्ययन ६ कल्प व्यवहार १० कल्पाकल्पिक ११ महाकल्पिक १२ पुण्डरीक १३ महापुण्डरीक १४ निशीथिका ४२ ।
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घवला पु० १ प्रस्ता० पृ० ७१, जयधवला पृ० ८७.
४१ देखी जयधवला प्रस्ता० पृ० ४६.
૪૨ जयषवला पू० २५. भवला पु० १, पृ० ६६. गोमट्टसार जीव० ३६७, ३६५.
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