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१०६ ग्रागम युग का जैन दर्शन
उसके बाद उन्होंने परमाणु पुद्गल के विषय में भी पूछा । और वैसा ही उत्तर मिला । किन्तु जब उन्होंने द्विप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में पूछा, उसके उत्तर में भंगों का आधिक्य है, सो इस प्रकार -
१. द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यादात्मा है ।
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नहीं है ।
स्यादवक्तव्य है ।
स्यादात्मा है और आत्मा नहीं है ।
स्यादात्मा है और अवक्तव्य है ।
स्यादात्मा नहीं है और अवक्तव्य है ।
इन भंगों की योजना के अपेक्षाकारण के विषय में अपने प्रश्न
का गौतम को जो उत्तर मिला है, वह इस प्रकार -
१. द्विप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा के आदेश से आत्मा है ।
२. पर के आदेश से आत्मा नहीं है ।
३. तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है ।
४. देश 3 आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से और देश आदिष्ट है असद्भाव पर्यायों से । अतएव द्विप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है, और आत्मा नहीं है ।
५. देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से और देश आदिष्ट है तदुभय पर्यायों से । अतएव द्विप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा है और अवक्तव्य है ।
६. देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और देश आदिष्ट है तदुभय पर्यायों से । अतएव द्विप्रदेशिकं स्कन्ध आत्मा नहीं है, और अवक्तव्य है । इसके बाद गौतम ने त्रिप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में वैसा ही प्रश्न पूछा, उसका उत्तर निम्नलिखित भंगों में मिला
( १ ) १ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध स्यादात्मा है ।
( २ ) २. त्रिदेशिक स्कन्ध स्यादात्मा नहीं है ।
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एक ही स्कन्ध के भिन्न-भिन्न भ्रंशों में विवक्षा मेद का श्राश्रय लेने से चौथे से आगे के सभी भंग होते हैं। इन्हीं विकलादेशी भंगों को दिखाने की प्रक्रिया इस वाक्य
से प्रारंभ होती है ।
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