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आगम-युग का जैन-दर्शन
जीव
द्रव्य
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अरूपी १. धर्मास्तिकाय
२. अधर्मास्तिकाय
३. आकाशास्तिकाय
४. अद्धासमय (काल)
अजीव
1
इसके अनुसार पुद्गल के अलावा कोई द्रव्य रूपी नहीं है । अतएवं मुख्य रूप से पुद्गल का लक्षण वाचक ने किया कि " स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः।” (५.२३) । तथा " शब्द - बन्ध- सौक्ष्म्य-स्थौत्य-संस्थान - मेद - तमश्छाया तपोद्योतवन्तश्च ।” ( ५.२४ ) इस सूत्र में बन्धयादि अनेक नये पदों का भी समावेश करके उत्तराध्ययन के लक्षण की विशेष पूर्ति की ।
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रूपी
१. पुद्गल
पुद्गल के विषय में पृथक् दो सूत्रों की क्यों आवश्यकता है ? इसका स्पष्टीकरण करते हुए वाचक ने जो कहा है, उससे उनकी दार्शनिक विश्लेषण शक्ति का पता हमें लगता है । उन्होंने कहा है कि
"स्पर्शादयः परमाणुषु स्कन्धेषु च परिणामजा एव भवन्ति । शब्दादयश्च स्कन्धेष्वेव भवन्ति अनेकनिमित्ताश्च इत्यतः पृथक्करणम्” तत्त्वार्थभाष्य ५.२ ।
परन्तु द्रव्यों का साधर्म्य - वैधर्म्य बताते समय उन्होंने जो " रूपिणः पुद्गलाः” ( ५.४ ) कहा है, वही वस्तुतः पुद्गल का सर्वसंक्षिप्त लक्षण है और दूसरे द्रव्यों से पुद्गल का वैधर्म्य भी प्रतिपादित करता है ।
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