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भागम-युग का जैन-दर्शन
मतिज्ञान के भेद :
आगमों में मतिज्ञान को अवग्रहादि चार भेदों में या श्रुतनिश्रितादि दो भेदों में विभक्त किया गया है। तदनन्तर प्रभेदों की संख्या दी गई है। किन्तु वाचक ने मतिज्ञान के भेदों का क्रम कुछ बदल दिया है (१,१४ से) । मतिज्ञान के मौलिक भेदों को साधन भेद से वाचक ने विभक्त किया है। उनका क्रम निम्न प्रकार से है। एक बात का ध्यान रहे, कि इसमें स्थानांग और नन्दीगत अश्रुतनिःसृत और श्रुतनिःसृत ऐसे भेदों को स्थान नहीं मिला, किन्तु उस प्राचीन परम्परा का अनुसरण है, जिसमें मतिज्ञान के ऐसे भेद नहीं थे। दूसरा इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि नन्दी आदि शास्त्रों में अवग्रहादि के बह्वादि प्रकार नहीं गिनाए हैं, जबकि तत्त्वार्थ में वे विद्यमान हैं । स्थानांगसूत्र के छठे स्थानक में (सू० ५१०) बह्वादि अवग्रहादि का परिगणन क्रमभेद से है, किन्तु वहाँ तत्त्वार्थगत प्रतिपक्षी भेदों का उल्लेख नहीं। इससे पता चलता है, कि ज्ञानों के भेदों में बह्वादि अवग्रहादि के भेद की परम्परा प्राचीन नहीं। मतिज्ञान के दो भेद :
१. इन्द्रियनिमित्त
२. अनिन्द्रियनिमित्त मतिज्ञान के चार भेद :
१. अवग्रह २. ईहा ३. अवाय
४. धारणा मतिज्ञान के प्रदाईस भेद : इन्द्रियनिमित्तमतिज्ञान के चौबीस भेद :
३५ स्थानांग का क्रम है—क्षिप्र, बहु, बहुविध, ध्रव, अनिश्रित और असंदिग्ध तत्त्वार्थ का क्रम है-बह, बहुविध क्षिप्र, अनिश्रित, असंदिग्घ और ध्रव। दिगम्बर पाठ में असंदिग्ध के स्थान में अनुक्त है।
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